भास्कर न्यूज | राजनांदगांव जैन बगीचे में चातुर्मासिक प्रवचन में बुधवार को जैन संत मुनि विनय कुशल श्रीजी के शिष्य मुनि वीरभद्र (विराग) श्रीजी ने कहा कि हम कोई भी क्रिया लोगों को खुश करने के लिए करते हैं किंतु परमात्मा को खुश करने के लिए कोई क्रिया नहीं करते। जब तक परमात्मा को खुश करने के लिए क्रिया नहीं करेंगे तो अपनी क्रियाओं में आनंद कहां आ पाएगा? कहा कि पाप का वास्तविक स्वरूप हम समझ नहीं पाए हैं। हमारी प्रवृत्ति कैसी हो, इसे भी हम समझ नहीं पाए हैं। उपसर्ग को समता के साथ सहन करना होगा तभी हम अपनी क्रियाओं का आनंद उठा पाएंगे। हम व्रत तो करते हैं किंतु कुछ छूट के साथ। हमें इस दृढ़ निश्चय के साथ व्रत करना चाहिए कि चाहे जैसी परिस्थितियां आ जाए व्रत नहीं तोडूंगा। तात्विक दृष्टि आ जाए तो यह संभव होगा। जब तक मन में समाधि ना हो तब तक हम अपने व्रत में टिके नहीं रह नहीं सकते। मन के अंदर स्थिरता रहे उस परिस्थिति को समाधि कहते हैं। आत्मा को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकता, उसे नुकसान या फायदा पहुंचाना केवल अपने पास है। धर्म के प्रति अहोभाव लाएं और मन को निर्मल बनाएं: मुनि श्रीजी ने कहा कि धर्म के प्रति अहोभाव आ जाए तो हम जो भी क्रिया करेंगे, उसका आनंद भी प्राप्त कर पाएंगे। कहा कि हम क्रियाएं तो कर रहे हैं किंतु उसमें आनंद नहीं है, क्योंकि हम क्रियाओं को लोगों को खुश करने के लिए करते हैं, जिस परमात्मा ने हमें सब कुछ दिया है, हम उन्हें खुश करने के लिए कुछ नहीं करते।