झारखंड एकेडमिक काउंसिल (जैक) ने स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग की अनुमति के बिना वित्त रहित इंटर कॉलेजों में सीटें बढ़ा दी है। इस पर विभाग ने जैक को शोकॉज किया है। विभाग के सचिव उमाशंकर सिंह ने जैक को पत्र लिखकर भ्रष्टाचार की आशंका जताई है। इसमें कहा गया है कि इन वित्त रहित संस्थानों को हर साल सेशन बढ़ाने के लिए एप्लीकेशन देने को मजबूर किया जाता है। इससे उन्हें बेवजह की दिक्कतें होती हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। बताते चलें कि पिछले साल 28 जुलाई को इंटर कॉलेजों में 128 सीटें बढ़ा दी गई थी। वित्त रहित इंटर कॉलेज सरकार के सहयोग से संचालित हो रही है। बिना परमिशन के सीटें बढ़ाने का सीधा मतलब है सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ बढ़ाना। सरकार का कहना है कि बच्चों का एडमिशन वैसी सीटों पर हो रही है, जिसकी कोई कानूनी मंजूरी नहीं है। भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन की ओर इशारा: शिक्षा विभाग का यह पत्र शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार और गहरे कुप्रबंधन की ओर सीधा इशारा करता है। सरकार ने इस मामले को बेहद गंभीरता से लिया है, और अब सभी की निगाहें झारखंड अधिविद्य परिषद पर टिकी हैं कि वह इस पर क्या जवाब देता है। ताकि शिक्षा के क्षेत्र में पारदर्शिता, जवाबदेही और गुणवत्ता सुनिश्चित की जा सके। इन दो बिंदुओं पर जैक से मांगा जवाब 1. सत्र विस्तारीकरण का औचित्य : जैक को यह स्पष्ट करना होगा कि हर साल सत्र के विस्तारण की क्या आवश्यकता है, और यह किन नियमों के तहत किया जा रहा है। 2. अतिरिक्त नामांकन का आधार : सरकार द्वारा इंटर कॉलेजों में एडमिशन सीटें निर्धारित है।ं इसके बाद अतिरिक्त सीटों पर नामांकन किस आधार पर किए जा रहे हैं और इसके लिए कौन जिम्मेदार है।