वनांचल क्षेत्र जशपुर में बारिश थमने का नाम नहीं ले रही है। 16 जून से मानसून सक्रिय है और सरकारी हिसाब-किताब में तो इसका सीजन बीत चुका है। जून में 15 दिन, जुलाई और अगस्त में 31–31 दिन, सितंबर में 30 दिन और अक्टूबर में 6 दिन मिलाकर 101 दिन तक इस बार मानसून की सक्रियता बनी रही है। आम तौर पर मानसून सीजन 1 जून से 30 सितंबर तक ही माना जाता है। इस साल मानसून की बारिश ने बीते डेढ़ दशक का रिकार्ड तोड़ दिया है। 2011 के बाद सबसे अधिक बरसात वाला साल 2020 माना जा रहा था, लेकिन इस साल जिले में सबसे अधिक 1358.8 मिमी औसत वर्षा हुई है। इस साल 1 जून से 6 अक्टूबर तक की अवधि में 1716.2 मिमी औसत वर्षा हो चुकी है। यह 10 साल के जिले की कुल औसत वर्षा से करीब 722 मिमी ज्यादा है। 2020 में हुई अधिक बारिश को लेकर लोग कयास लगा रहे थे कि लॉकडाउन से प्रदूषण कम हुआ है, इसलिए अच्छी बारिश हो रही है। जशपुर जिले की भौगोलिक स्थिति के कारण इतनी अधिक बारिश के बावजूद ना तो कोई इलाका डूबान क्षेत्र बना और ना ही बाढ़ की वजह से कहीं मौत हुई है। पहाड़ी इलाका होने से चाहे जितनी बरसात हो पानी बहकर नदी–नालों के रास्ते निकल जाता है। हालांकि ज्यादा बारिश का असर फसलों पर देखा जा रहा है। धान की फसल सभी जगह लगी है। जिले में 16 जून को मानसून सक्रिय हुआ। इसके बाद 17 से 20 जून तक बिना रुके चार दिन लगातार बारिश हुई। जून, जुलाई, अगस्त, सितंबर और अक्टूबर की 6 तारीख के बीच ऐसा एक दिन भी नहीं गुजरा है, जिस दिन जिले में कहीं ना कहीं बारिश न हुई हो। जशपुर शहर की बात करें, तो यहां इस सीजन में सावन महीने की झड़ी जैसा मौसम कई बार बना। कभी सुबह बारिश हुई, तो कभी दोपहर में। दिन में बारिश नहीं हुई तो बादल शाम को बरसे। शून्य मिमी वर्षा वाला दिन एक भी नहीं रहा। कहां, कितनी हुई बारिश भू-अभिलेख शाखा से प्राप्त जानकारी के अनुसार जशपुर में 1243.9 मिमी, मनोरा में 1368.9 मिमी, कुनकुरी में 1532.0 मिमी, दुलदुला में 6996.4 मिमी, फरसाबहार में 808.5 मिमी, बगीचा में 1183.3 मिमी, कांसाबेल में 1022.4 मिमी, पत्थलगांव में 977.4 मिमी, सन्ना में 1269.4 मिमी एवं बागबहार में 759.3 मिमी वर्षा हो चुकी है। सबसे ज्यादा बारिश कुनकुरी में दर्ज की गई है। खेतों में भरा कीचड़ व पानी, अब बारिश हुई तो धान नहीं बच पाएंगे किसान इस साल अधिक बारिश को लेकर चिंतित हैं। गोड़ा धान पक चुके हैं। किसान काटना चाहते हैं पर कटाई के लिए मौसम नहीं खुल रहा है। इधर पतले धान वाले खेतों में पानी और कीचड़ भरा है। फसल जहां तैयार हो रही है, वहां फसल कटाई के लिए किसान इतनी कीचड़ में नहीं उतर सकते हैं। किसान लिलेन्द्र लाल बताते हैं कि कीचड़ वाले खेत में फसल की बुआई रोपाई आसान है, कटाई नहीं की जा सकती है। यदि और बारिश हुई तो धान के दाने भी खराब होंगे।