मोहम्मद निजाम/ अखिल शर्मा की रिपोर्ट प्रदेश के सबसे बड़े सरकारी अंबेडकर अस्पताल की कैंसर यूनिट। शुक्रवार को दोपहर करीब ढाई बजे। पहले फ्लोर पर स्थित पुरुष कैंसर वार्ड। सारे बेड फुल हैं। मरीजों की संख्या इतनी बढ़ गई कि कई का जमीन पर बेड लगाकर इलाज किया जा रहा है। वहां तुलेश्वर पटेल लेटे हैं। उनके रिश्तेदार बाजू में बैठे हैं। इलाज फ्री मिल रहा है या नहीं पूछने पर उन्होंने कहा- हां.. लेकिन पेट स्कैन जांच करवाने के लिए 24 हजार रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं। वार्ड के दूसरे हिस्से में आशुतोष शर्मा और लच्छू ताती अलग-अलग बेड पर थे। दंतेवाड़ा के लच्छू पुलिस में है। आशुतोष और लच्छू दोनों ने एक-एक हफ्ते पहले ही प्राइवेट अस्पतालों में जाकर पेट स्कैन जांच कराई है। ये कहानी महज तीन मरीजों की नहीं है। अंबेडकर से रोज औसतन 8 से 9 मरीज पेट स्कैन जांच कराने निजी अस्पताल जाते हैं। जबकि अंबेडकर अस्पताल में ये जांच फ्री हो सकती है, क्योंकि 7 साल पहले 15 करोड़ की पेट स्कैन मशीन सीजीएमएससी खरीदकर दे चुका है। अब चिकित्सा शिक्षा विभाग 50 हजार रुपए महीने के वेतन पर टेक्नीशियन नहीं रख पा रहा है, जिससे यह मशीन धूल खा रही है। भास्कर ने पड़ताल की तो पता चला कि सालों से टेक्नीशियन की भर्ती प्रक्रिया केवल प्रस्तावों में ही अटकी है। मेडिकल कॉलेज और अंबेडकर अस्पताल के अफसरों द्वारा इस दौरान दो-तीन बार टेक्नीशियन भर्ती का प्रस्ताव चिकित्सा शिक्षा विभाग को भेजा गया है। चिकित्सा शिक्षा विभाग की ओर से फाइल वित्त विभाग को भेजी गई पर वहां से जानकारी मांगी गई और मामला ठंडा पड़ गया। प्राइवेट में 50 से 70 हजार तक सैलरी
निजी अस्पतालों में जहां ये मशीन चल रही है, वहां टेक्नीशियन को 50 से 70 हजार सैलरी दी जा रही है। सरकारी तौर पर चूंकि अन्य तरह की सुविधाएं दी जाती हैं, ऐसी दशा में और भी कम सैलेरी देकर टेक्नीशियन और एक्सपर्ट की नियुक्ति कर सकती है। सीजीएमएससी ने बिना प्रस्ताव खरीदी करोड़ों की मशीन पड़ताल में सामने आया कि पेट स्कैन चालू न होने के पीछे चिकित्सा शिक्षा विभाग से ज्यादा सीजीएमएससी के तत्कालीन अफसर जिम्मेदार हैं। उन्हें न तो चिकित्सा शिक्षा विभाग ने और न ही अंबेडकर अस्पताल प्रशासन की ओर से ये मशीन खरीदने का प्रस्ताव भेजा गया था। मशीन की निर्माता कंपनी की ओर से केवल इस मशीन की जरूरत और फायदे का उल्लेख करते हुए तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर को जानकारी दी गई। स्वास्थ्य मंत्री ने अस्पताल के तत्कालीन अधीक्षक को लिखकर मशीन की उपयोगिता के बारे में पूछा। तब अधीक्षक ने लिख दिया कि ये अच्छी है और मरीजों के लिए उपयोगी होगी। इसी आधार पर मंत्री ने सीजीएमएससी को आगे की कार्रवाई के लिए लिखकर भेज दिया। और मशीन खरीद ली गई। अस्पताल से प्रस्ताव नहीं भेजा गया है इसलिए अब टेक्नीशियन की नियुक्ति के लिए मंजूरी नहीं मिल पा रही।