प्रत्येक जाति, वर्ण के पृथक-पृथक कुलदेवी-देवता, भिन्न-भिन्न खानपान और परंपराएं होती हैं, जिनके आधार पर जाति और वर्ण की पहचान बनती है, कोई भी अपनी कुल-परंपराओं को नहीं छोड़ सकता। इसलिए सामाजिक दृष्टि में सब एक हैं, पर व्यावहारिक मर्यादा में नहीं। यही सनातन की पहचान है। नहीं तो दूसरे संप्रदायों और हममें क्या अंतर? अनेकता में एकता के दर्शन कराता है सनातन धर्म। एरोड्रम क्षेत्र में दिलीप नगर नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ इंदौर के अधिष्ठाता ब्रह्मचारी डॉ. गिरीशानंदजी महाराज ने अपने नित्य प्रवचन में बुधवार को यह बात कही। झूठ और पाखंड ज्यादा देर तक नहीं टिकता महाराजश्री ने कहा कि समाज, देश और घर-परिवार को मजबूत बनाने के लिए सामाजिक परिवर्तन अनादि काल से होते आ रहे हैं। जैसे भगवान राम के पिता की तीन पत्नियां थीं, पर भगवान राम ने उनका विरोध न करते हुए एक पत्नी व्रत अपनाया। परिणाम यह हु्आ कि अधिकांश लोगों ने इस बात को स्वीकारा। बहुत से परिवर्तन ऐसे आए जो सामाजिक हित में रहे। आज सनातन के नाम पर सनातन को कुचलने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है, यह बेहद चिंताजनक है। अंधविश्वास चलाकर लोगों को इकट्ठा करना, धार्मिक विश्वास को लूटना, कथा के नाम पर हंसी-ठिठौली कर सनातनी परंपराओं को दरकिनार कर मनगढ़ंत दृष्टांत सुनाना, धार्मिक भावनाओं से खेलने का यह दुस्साहसिक प्रयास एक दिन असफल होना ही है। झूठ और पाखंड ज्यादा देर तक नहीं टिक पाता।