छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का रातापायली गांव देहदानियों का गांव बन गया है। 280 घरों वाले इस गांव के 144 लोगों ने देहदान के लिए रजिस्ट्रेशन कराया है। अब तक गांव के 6 लोगों की देह मेडिकल कॉलेज को दान भी कर दी गई है। गांव के एक ही कुनबे के 32 लोगों ने भी देहदान किया है। गांव वालों से प्रेरित होकर अब गांव की बेटियों के ससुराल और बहुओं के मायके वाले भी देहदान करने लगे हैं। देहदान की पहल यहां परंपरा बनती जा रही है। इसकी शुरुआत रिटायर्ड शिक्षक पुनारद दास साहू ने की। उन्होंने 2014 में अपना और पत्नी के देहदान के लिए रजिस्ट्रशन कराया। उसके बाद दूसरों को देहदान के लिए प्रेरित करने लगे। इसके लिए हर साल विशेष आयोजन शुरू किए। अब आसपास के गांव वाले भी देहदान कर रहे हैं। 78 साल के रिटायर्ड शिक्षक दास बताते हैं कि देहदान की प्रेरणा उन्हें उनके मित्र से मिली। जब उसकी मृत्यु हुई तो पता चला कि उसने अपना देहदान कर दिया था। हर साल सम्मेलन… ताकि लोग यह समझ सकें कि देहदान क्यों जरूरी: देहदानी पुनारद साहू ने बताया कि देहदान की अलख जगाने रातापायली में हर साल एक सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। इसमें आसपास के गांव के लोग और उनके रिश्तेदारों को भी शामिल किया जाता है। इस सम्मेलन से हर साल देहदान करने वालों की संख्या में इजाफा होने लगा है। लोग अपने क्षेत्र के स्वास्थ्य विभाग में इसके लिए पंजीयन करा रहे हैं। सत्संग से भ्रांतियां दूर हुईं तो देहदानियों की संख्या बढ़ी
ग्रामीण क्षेत्रों में देहदान को लेकर ज्यादा भ्रांतियां हैं। इसे दूर करने के लिए रिटायर्ड शिक्षक जगह-जगह होने वाले सत्संगों में जाते हैं। वहां भी लोगों को बताते हैं कि देहदान मौत के बाद समाज को की गई ऐसी सेवा है, जिससे चिकित्सा विज्ञान विकसित होगा और ईश्वर को खुशी मिलेगी। शिक्षक ने देहदान करने वालों व इससे जुड़े आयोजनों की पूरी जानकारी दीवार पर तस्वीर की तरह सजाकर रखी है। देहदान और अंगदान को लेकर शहर के लोगों में भी जागरूकता की कमी है। ऐसे में ग्रामीण क्षेत्र के लोगों ने इतनी बड़ी संख्या में देहदान किया है। यह अपने आप में अद्भुत बात है। देहदान की घोषणा कर चुके लोगों की देह मृत्यु के बाद मेडिकल कॉलेज में शिक्षक की भूमिका निभाएगी। – डॉ. पंकज लुका, डीन, मेडिकल कॉलेज, राजनांदगांव