श्मशान में प्रेतों की मुक्ति के लिए सुनाते हैं भागवत:अद्भुत हैं रामस्नेही संत हरिरामजी महाराज, मोइनुद्दीन के घर भी सुनाई भागवत कथा

शहर के प्रमुख आध्यात्मिक केंद्र गीता भवन में चल रहे गीता जयंती महोत्सव में एक संत ऐसे भी आए हैं, जिन्होंने प्रेतों के मोक्ष के लिए श्मशान में भागवत कथा की है और जेलों में कैदियों को कथा और दृष्टांतों के माध्यम से समाज की मुख्य धारा में जुड़ने की राह दिखा रहे हैं। संभवत: आप समझ गए होंगे कि यहां बात की जा रही है रामस्नेही संप्रदाय के वरिष्ठ संत हरिरामजी महाराज की। उन्होंने हमेशा कुछ हटकर काम किया है और सनातन धर्म में नई ऊर्जा का संचार किया है। दैनिक भास्कर ने उनसे चर्चा की- क्या ये सच है कि आपने श्मशान में प्रेतों के लिए भागवत कथा की है? -हां, मैंने इंदौर (सन् 2006 में पंचकुइया मुक्तिधाम में) सहित कई शहरों में श्मशान भूमि में भागवत कथा करते भटकती आत्माओं की मुक्ति का प्रयास किया है। भागवत कथा मनुष्य के साथ ही प्रेतों का भी कल्याण करती है। कानों में यदि भागवत कथा का एक भी श्लोक सुनाई दे जाए तो इसमें कोई संदेश नहीं कि मुक्ति मिल जाती है। शुकदेवजी ने राजा परीक्षित को श्रीमद् भागवत कथा सुनाते हुए इस महान शास्त्र को मुक्ति देने वाला बताया है। जहां तक श्मशान की बात है वह भगवान शंकर की भूमि है, यहां आकर आत्माएं विराजमान होती हैं। जब ये सनातन धर्म के सर्वश्रेष्ठ ग्रंथ को सुनते हैं तो इन्हें सद्गति प्राप्त होती है। क्या और भी ऐसे कुछ हटकर स्थान हैं, जहां आपने कथा-अनुष्ठान किए हैं? -हां.. वर्ष 2003 में जोधपुर की सेंट्रल जेल में कैदियों को भागवत कथा सुनाकर उनका जीवन बदलने का प्रयास किया है। इसके बाद 23 अन्य जेलों में भी कथा सुनाकर कैदियों का मार्ग प्रशस्त किया है और उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया है। कई कैदियों ने अपराधों की राह छोड़कर शांतिपूर्ण जीवन शुरू किया है। इनके साथ ही कोई ऐसा स्थान जो सामान्य से अलग हो, जहां आपने कथा सुनाई हो? -बिल्कुल, एक और स्थान आपको बताना चाहूंगा, वो है जोधपुर के मोइनुद्दीन मनचला का घर। उनके घर वर्ष 2005 में भागवत कथा की थी, उनके पूरे परिवार ने कथा सुनी। इन दिनों जात-पात को समाप्त करने की बात चल रही है, जबकि सनातन धर्म में वर्ण व्यवस्था का काफी महत्व है? – देखिए, हाथ की जगह हाथ, पांव की जगह पांव है, नाक की जगह नाक है, आंख की जगह आंख है, परंतु इन संपूर्ण अंगों की वजह से ही इस शरीर की पहचान है। इसी तरह अनेक प्रकार की जातियों की व्यवस्था है और चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र हैं। इस तरह से अलग-अलग कार्यभार सौंपे गए हैं, पर हैं ये सब एक ही। जहां तक जात-पात समाप्त करने की बात है, इसमें समझ की फेर है। जात-पात समाप्त नहीं होती है, क्योंकि ये सनातन धर्म के अंग हैं। मुस्लिम में भी अलग-अलग प्रकार की जातियां हैं, पर वे अपने को मुस्लिम ही कहते हैं। इसी तरह से हम विभिन्न जातियों में हैं पर हिंदू हैं। श्रीमद् भागवत गीता का मानव जीवन और सनातन धर्म में क्या महत्व है? -गीता हमारी संजीवनी है और हर प्रश्नों का उत्तर देने वाली है। गीता का सबसे पहला शब्द है धर्मक्षेत्रे…. और अंतिम शब्द है मम्…, यानी गीता मेरा धर्म सिखाती है। गुरु, गाय, गीता, गोविंद, गायत्री, गोवर्धन, गणेश ये सब हमारे सनातन धर्म की दिव्यतम् पहचान हैं। ये विशेषता केवल हमारे भारत देश की है। इनसे पूरा विश्व आलोकित होता है।

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