भास्कर न्यूज | जालंधर 12 अगस्त को सुख-सौभाग्य, संतान की समृद्धि और परिवार के कल्याण के लिए महिलाएं संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखेंगी। संकष्टी चतुर्थी भगवान गणेश को समर्पित है। हिंदू पंचांग के अनुसार, पूर्णिमा के बाद आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी संकष्टी चतुर्थी के रूप में मनाई जाती है। पुराणों में इसका खास महत्व बताया गया है। इस दिन विघ्नहर्ता श्रीगणेश जी की पूजा का विधान है। विद्वानों के अनुसार, इस दिन व्रती महिलाओं को गणेश जी के पूजन के बाद सकट चौथ की कथा भी सुननी चाहिए। इस व्रत में पानी में तिल डालकर नहाया जाता है। फलाहार में तिल का इस्तेमाल किया जाता है। साथ ही गणेशजी की पूजा भी तिल से की जाती है और उन्हें तिल के लड्डुओं का भोग लगाया जाता है। श्री शिव दुर्गा मंदिर बस्ती पीरदाद रोड कमल विहार के पुजारी गौतम भार्गव ने संकष्ट का अर्थ समझाते हुए बताया कि इस शब्द का मतलब कष्ट या विपत्ति से है। संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत करने से सभी कष्टों से मुक्ति प्राप्त होती है। उन्होंने बताया कि चतुर्थी के दिन चंद्र दर्शन शुभ माना जाता है। चंद्रोदय के बाद ही व्रत पूरा होता है। मान्यतानुसार, चतुर्थी को संकट हरने वाला व्रत बताया गया है। इस दिन सुबह से लेकर चंद्रोदयकाल तक व्रत रखा जाता है। चंद्रोदय होने पर मिट्टी के गणेशजी की मूर्ति बनाकर उन्हें लाल कपड़ा बिछाकर चौकी पर स्थापित किया जाता है। गणेशजी के साथ उनके अस्त्र और वाहन भी होने चाहिए। गणेशजी की स्थापना कर षोड्शोपचार से विधिपूर्वक उनका पूजन करें। उसके बाद मोदक और गुड़ से बने हुए तिल के लड्डू को नैवेद्य अर्पित करें। वहीं तांबे के पात्र में लाल चंदन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमीपत्र, दही और जल एकत्र कर मंत्रोच्चारण करना चाहिए। पूजन के बाद ॐ गं गणपतये नम: मंत्र के जाप के साथ संकट गणेश चौथ माता की कथा सुनी जाती है और शाम को गणेशजी का और चंद्रोदय के समय चंद्र का पूजन कर ॐ सोम सोमाय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए और प्रभु का आशीर्वाद लेना चाहिए। श्री बालाजी धाम, थापरा मोहल्ला में स्थित श्री गणेश जी की प्रतिमा।