सदर में न्यूरोसर्जरी भी, ऐसा करने वाला पूर्वी भारत का पहला जिला अस्पताल

सिटी एंकर रांची सदर अस्पताल पूर्वी भारत का पहला जिला अस्पताल बन चुका है, जहां अब न्यूरोसर्जरी की सुविधा मिलने लगी है। बिहार, ओड़िशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल के किसी भी जिला अस्पताल में वर्तमान में यह सुविधा नहीं है। अस्पताल में दो सालों से सुपरस्पेशलिटी अस्पताल जैसी सुविधाएं मिल रही हैं।
यहां सुपरस्पेशलिटी चिकित्सा से जुड़े आधा दर्जन से ज्यादा विभागों का संचालन हो रहा है। इनमें कार्डियोलॉजी, पीडियाट्रिक सर्जरी, हेमेटोलॉजी, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी, क्रिटिकल केयर, आंकोलॉजी समेत अन्य विभाग हैं। अब न्यूरोसर्जरी विभाग खुलने से मरीजों को काफी लाभ पहुंच रहा है। सिविल सर्जन डॉ. प्रभात कुमार ने बताया कि रांची सदर अस्पताल में 7 मॉड्यूलर ऑपरेशन थिएटर के साथ-साथ एडवांस उपकरण भी हैं। यहां दो न्यूरोसर्जन सेवा दे रहे हैं। न्यूरोसर्जन डॉ. अशोक मुंडा विभाग के हेड हैं। रिम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग में 100 बेड राज्य के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज रिम्स के न्यूरोसर्जरी विभाग में करीब 100 बेड हैं। साल भर यहां 150% मरीजों की ऑक्यूपेंसी रहती है। इस कारण विभाग के बाहर फर्श पर 30 से 40 मरीजों को इलाज कराना पड़ता है। हालांकि, अब रांची सदर अस्पताल विकल्प के रूप में खड़ा हो रहा है। सदर अस्पताल के न्यूरोसर्जरी में 20 बेड सिविल सर्जन डॉ. प्रभात कुमार ने बताया कि सदर अस्पताल के बिल्डिंग-1 में 20 बेड के साथ न्यूरोसर्जरी विभाग की शुरुआत की गई है। यदि गंभीर मरीज पहुंचते हैं तो क्रिटिकल केयर आईसीयू की सुविधा भी है। न्यूरोसर्जरी वार्ड में प्री और पोस्ट ऑपरेटिव मरीजों के लिए सभी उपकरण लगे हैं। रीढ़ की हड्डी की सर्जरी की बोकारो जिले के चंदनकियारी निवासी अशोक दिसंबर 2024 में दुर्घटना में घायल हो गए थे। उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई है। नस भी दब गई है। सदर अस्पताल रांची में आने पर डॉक्टरों ने रीढ़ की हड्डी की सर्जरी की। अब वे स्वस्थ हैं। उनके दोनों पैर काम भी करने लगे हैं। नस के रिपेयर के लिए सर्जरी गिरिडीह की महिला पिछले पांच साल से चलने-फिरने में असमर्थ थी। स्पाइन की एल3, एल4, एल5 और एस1 नस कमर के नीचे दबी हुई थी। सदर अस्पताल के डॉक्टरों ने सर्जरी कर सभी दबे हुए नस को रिपेयर किया। ऑपरेशन के बाद अब वे बिल्कुल स्वस्थ हैं। ब्रेन की सर्जरी कर प्लेट लगाई {सड़क दुर्घटना में ब्रेन के बड़े आकार की हड्‌डी (15×15 सेमी) टूटकर गायब हो गई थी। मरीज अस्पताल पहुंचा तो डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी कर ब्रेन को कवर करने के लिए टाइटेनियम प्लेट (जाली के रूप में) लगाया। ऑपरेशन के बाद अब इकबाल बिल्कुल स्वस्थ है। इन्हें मिला सदर अस्पताल में नया जीवन… नाम : अशोक भगत, उम्र 64 नाम : नागेश्वरी देवी, उम्र 42 नाम : मो. इकबाल, उम्र 39

FacebookMastodonEmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *