सिरोही में पेवेलियन स्थित आदर्श विद्या मंदिर विद्यालय के सभागार में रविवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रमुखजन गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस गोष्ठी में शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, उद्योग, प्रशासन, समाज सेवा, पर्यावरण, कला और विधिक सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रमुख प्रतिनिधियों तथा मातृशक्ति ने भाग लिया। गोष्ठी में समाज केंद्रित जिज्ञासा, समाधान और राष्ट्रीय चुनौतियों पर गहन विमर्श हुआ। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रांत प्रोढ़ कार्य प्रमुख प्रवीण कुमार ने राष्ट्र के समक्ष खड़ी चुनौतियों की विस्तृत व्याख्या की। उन्होंने इन चुनौतियों के समाधान में समाज की भूमिका को निर्णायक बताया। प्रवीण कुमार ने कहा कि समाज परिवर्तन केवल किसी संगठन के प्रयासों से नहीं, बल्कि नागरिकों की सक्रिय भूमिका से ही संभव है। उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से लेकर शताब्दी वर्ष तक की यात्रा और उसके संघर्षों के तथ्यों को प्रस्तुत किया। प्रवीण कुमार ने इस बात पर जोर दिया कि ‘संघ ही समाज है और समाज ही संघ है’। उन्होंने रामायण काल में जाम्बवंत की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्तमान में संघ वही भूमिका निभा रहा है और राष्ट्र के जागरण में समाज का सहयोग मांग रहा है। प्रवीण कुमार ने मातृशक्ति की भूमिका को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि परिवार, समाज और राष्ट्र की दिशा तय करने की क्षमता मातृशक्ति के पास है। यदि वे संकल्प लें, तो अनेक सामाजिक और पारिवारिक चुनौतियों का समाधान सहजता से संभव हो सकता है। अपने संबोधन में उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास रचित श्री रामचरितमानस की प्रसिद्ध चौपाई ‘कहई रीछपति सुनु हनुमाना, चुप साधि रहेयु बलवाना’ का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि यह चौपाई हमें अपनी क्षमताओं को पहचानने और उन्हें राष्ट्र सेवा एवं ईश्वर सेवा में लगाने का संदेश देती है। प्रवीण कुमार ने अंत में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की 100 वर्ष की यात्रा राष्ट्र के लिए तपस्या, संगठन और सतत कार्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।


