सर्च इंजन की जानकारी के आधार पर इलाज की जिद करते हैं पेरेंट्स : डॉ. ग्रोवर

राजन गोसाईं | अमृतसर इंटरनेट और एआई के दौर में बच्चे और युवा तक एक ऐसे जाल में फंसते जा रहे हैं, जिससे अगर समय रहते नहीं निकले, तो नतीजे काफी भयावह होंगे। सर्च इंजन और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस जमाने में बच्चे छोटे-छोटे सवालों के जवाब भी एक क्लिक में हासिल कर रहे हैं। जिससे न सिर्फ इनकी मेंटल हेल्थ पर प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि उनकी फिजिकल हेल्थ भी प्रभावित हो रही है। ऐसी तकनीक बच्चों के लिए दोधारी तलवार की तरह बन गई है। बच्चे एक क्लिक में सारी जानकारी तो हासिल कर लेते हैं, लेकिन किताबों से जानकारी ढूंढने, विचार करने और बहस करने की उनकी क्षमता खत्म होती जा रही है। एक्सपर्ट के मुताबिक सर्च इंजन और एआई टूल्स के ज्यादा इस्तेमाल के चलते बच्चों खास तौर पर 11 से 18 वर्ष तक के बच्चों में सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता भी प्रभावित हो रही है। क्योंकि अब उन्हें सारे सवालों के जवाब सजी सजाई प्लेट में मिल रहे हैं। ऐसे में बच्चों ने अपने दिमाग का इस्तेमाल करना काफी हद तक कम कर दिया है। डाक्टरों के मुताबिक सर्च इंजन और एआई टूल्स का इस्तेमाल करना दोधारी तलवार जैसा है। सवालों का जवाब एआई टूल से हासिल करने वाले छात्र के कक्षा में पिछड़ने की अधिक गुंजाइश है। डाक्टर के मुताबिक 18 वर्षीय छात्र अपनी कक्षा के हर काम को करने के लिए एआई टूल्स की मदद लेने लगा। इससे उसकी शिक्षा का ग्राफ निरंतर गिरने लग गया। मौखिक और लिखित परीक्षा में वह अपने दिमाग के स्तर जितने जवाब देने में असमर्थ साबित हो रहा था। आनलाइन क्लासों ने भी बच्चों को दिमाग का कम इस्तेमाल करने की ओर किया प्रोत्साहित कोरोना काल के दौरान स्कूलों में तो छुट्टियां थीं, लेकिन स्कूल-कालेजों ने आनलाइन क्लासेज का ट्रेंड शुरू कर दिया। अब एक साथ 40 से 50 छात्रों को पढ़ा पाना टीचर और प्रोफेसरों के लिए मुश्किल हो रहा था, कुछ ऐसा ही छात्र-छात्रों के साथ भी हो रहा था। बच्चों के माहिर डा. नरेश ग्रोवर ने कहा कि उनके पास एआई टूल्स से प्रभावित बच्चे या युवा तो नहीं आते हैं, लेकिन बच्चों का उपचार कराने के लिए पहुंचने वाले पेरेंट्स जरूर इस बीमारी से ग्रस्त लगते हैं। वे अपने बच्चों के उपचार के बारे में पहले ही सर्च इंजन या कुछ वीडियो देख कर उनके पास पहुंचते हैं और उनसे उक्त पद्धति के मुताबिक उपचार करने के लिए कहते हैं। जबकि किसी भी बच्चे या मरीज का उपचार कराने के लिए सबसे पहले उनके टेस्ट इत्यादि कराए जाने जरूरी होते हैं। डा. हरजोत सिंह मक्कड़ ने कहा कि एआई टूल्स ने भले ही कम समय से बच्चों और युवाओं के बीच अपनी जगह बना ली है, लेकिन अब पिछले दस वर्षों की बात की जाए, तो कुछ सर्च इंजन भी उनके बौद्धिक विकास के लिए खतरा बन चुके थे। एआई टूल्स ने उनके बौद्धिक विकास पर अंकुश लगाना शुरू कर दिया। उनके मुताबिक एआई टूल्स के कारण खास तौर पर 11 से 18 वर्ष के बच्चों में रचनात्मक सोच और धैर्य की कमी देखी जा रही है। जब हर समाधान सामने परोसा मिलने लगे, तो खुद सोचने की जरूरत महसूस ही नहीं होती। डा. मक्कड़ का कहना है कि मोबाइल, केलकुलेटर और अन्य साइंटिफिक टूल्स से पहले ही बच्चे ही नहीं, बल्कि हर उम्र के लोगों की मानसिक याददाश्त की कमी देखने को मिलती थी। लेकिन एआई टूल्स ने अब बच्चों को भी प्रभवित करना शुरू कर दिया है। जो पेरेंट्स जागरूक हैं, वे तो अपने बच्चों को उनके पास लाकर उनका उपचार करा रहे हैं, लेकिन जागरूकता कमी वाले मां-बाप बच्चों को झिड़क कर या मारपीट कर सुधारने की गलत पद्धति अपना रहे हैं।

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