सिर्फ सरकारी प्रयास से चरित्र नहीं बना करता, चरित्र बनता है माताओं से व स्कूल से : हरिवंश

हरिवंश : एक बार मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी गया था। वहां मदन मोहन मालवीय के प्रप्रौत्र गंगाधर मालवीय ने बताया कि हमारे घर में दो किचन थे, एक में मालवीय जी के लिए खाना बनता और दूसरे में घर वालों के लिए। एक बार गंगाधर मालवीय जब स्कूल में पढ़ रहे थे, सुबह परीक्षा देने जा रहे थे। घर का नाश्ता नहीं बना था। मालवीय जी के किचन का नाश्ता बना था। खाना बनाने वाले ने पूछा कि क्या मैं आपके किचन का नाश्ता दे दूं। मालवीय जी बोले-घर के खर्चे से उसे पैसे दे दो, बाहर जाकर कुछ खा लेगा। बच्चे के जाने के बाद मालवीय जी ने भी नाश्ता नहीं किया। गंगाधर वापस आए तो पूछे दादाजी, आपने मुझे नाश्ता करने क्यों नहीं दिया। मैं भी भूखा रहा और आप भी भूखे रहे। मालवीय बोले- इसे तुम बड़े होकर समझोगे, मेरे घर का किचन दान की चीजों से चलता है। मैं चू​ंकि देश के लिए कुछ काम कर लेता हूं, तो वह जो दान के लिए चीजें आती हैं, मुझे नैतिक अधिकार है कि उसके साथ न्याय कर सकूं। तुम घर के लोग देश के लिए कुछ नहीं करते हो तो तुम्हें इस अन्न पर कोई हक नहीं। सरदार पटेल ने असंभव काम को करते हुए देश को एक सूत्र में बांधा। पटेल गंजी पहनते थे, वह फटी होती थी। खुद सूत कात सीते थे। अब बड़े-बड़े राजे-महाराजे उनके पीछे-पीछे चलते थे अपने राज्य के विलय के लिए। सारे राजा सोने से लकदक होते थे, जबकि पटेल के कपड़े पैबंद वाले। उनके इसी मूल्य ने हमें आजादी दिलाई। इन्हीं मूल्यों को लेकर राजलक्ष्मी सहाय ने अपनी किताबें लिखी हैं। राजलक्ष्मी सहाय को जितनी बधाई दी जाए कम है, उनकी 4 किताबें एक साथ लोकार्पण के लिए आई हैं। चारों पुस्तकों के विषय, आयाम, विधाएं व शैली अलग हैं। जहां ‘जय हिंद’ तिरंगे को समर्पित कथा संग्रह है। ‘काव्य पुष्पांजलि’ कविताओं का संग्रह है, ‘प्रेमचंद के आगे’ में उहोंने प्रेमचंद की नौ कहानियों का चयन कर, उसे समकालीन समय से जोड़ा है। प्रेमचंद ने जहां कहानियों को विश्राम दिया था, वहां से विस्तार के सूत्र को ले​खिका पकड़ती हैं। और ‘फटी टाट से निकले रामलला’ कविता संग्रह है। राजलक्ष्मी की सारी रचनाओं में चाहे वह कविता हो, कहानी हो या लेख, सभी के सार में देशप्रेम, चरित्र, नैतिकता, सरोकार, विरासत, पारिवारिक व सामाजिक मूल्य के साथ सनातन मूल्य शामिल हैं। हरिवंश ने उनकी एक कविता ‘जब तर्पण देखा मैंने’ पढ़कर सुनाई। 1995 में मैंने ​एक किताब पढ़ी जिसके लेखक ने उस समय के टॉप लीडर्स-थिंकर से बातें कीं और सबने कहा कि दुनिया को सबसे खतरा मूल्यों का खत्म होना है। दुनिया को बचाने के लिए मानवीय मूल्यों को बचा रहना जरूरी है। पारिवारिक-सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य खत्म हो जाए तो दुनिया रहने लायक नहीं रहेगी। भारत को अपना अस्तित्व बचाना है तो पश्चिम की नकल करने से बचना चाहिए। आज भारत की बातें सारी दुनिया सुन रही है। अगर भारत के लोग अपने मूल्यों से जुड़े न रहें तो सिर्फ सरकारी प्रयास से चरित्र नहीं बना करता, चरित्र दो ही जगहों से बनता है- माताओं से और स्कूल से। अंत में उन्होंने अब्राहम लिंकन के चर्चित पत्र को पढ़कर दर्शकों को सुनाया। राजलक्ष्मी सहाय की किताबों पर रांची विवि के छात्र शोध करेंगे : वीसी राज्यसभा के उपसभापति व वरिष्ठ पत्रकार हरिवंश ने ये बातें आरयू के मास कॉम विभाग में कही। लेखिका राजलक्ष्मी सहाय की 4 पुस्तकों ‘जय हिंद’, ‘काव्य पुष्पांजलि’, ‘प्रेमचंद के आगे’ और ‘फटी टाट से निकले रामलला’ का विमोचन किया गया। आरयू के वीसी प्रो. अजीत सिन्हा ने कहा कि राजलक्ष्मी की किताबें शोध का शक्ल लेने को आतुर हैं। प्रेमचंद की उनकी किताब को हम रांची विवि के कोर्स में लागू करेंगे। पीएचडी इस किताब पर होगी। डीएसपीएमयू के वीसी प्रो. तपन शांडिल्य ने पुस्तकों को राष्ट्रीय मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में मील का पत्थर बताया। वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. हर्षदेव शरण ने लेखिका की कविताओं का पाठ किया। पूर्व डीजीपी नीरज सिन्हा ने लेखिका के राम और शिव से जुड़े आध्यात्मिक पहलुओं को रेखांकित किया। वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने कहा कि राजलक्ष्मी सहाय को लेखकीय चौका के लिए बधाई। राजलक्ष्मी सहाय ने कहा कि लेखन कभी अकेले नहीं होता, वह समाज की सामूहिक स्मृतियों का विस्तार होता है। मंच संचालन डॉ. विनय भरत ने व धन्यवाद ज्ञापन प्रो. प्रकाश सहाय ने किया। कार्यक्रम में श्वेताभ, वरुण रंजन, नैंसी सहाय, आशा सिंह, विजया सिन्हा, संगीता शरण सहित 200 लोग मौजूद रहे।

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