मध्य प्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27 फीसदी आरक्षण लागू हो या नहीं, इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट 8 अक्टूबर से नियमित सुनवाई करने वाला है। इस सुनवाई का सबसे ज्यादा इंतजार 18 हजार सेलेक्टेड कैंडिडेट्स भी कर रहे हैं। इन्होंने मेहनत से सरकारी नौकरी तो हासिल कर ली है लेकिन एमपी में लागू 87:13 के फॉर्मूले में फंस गए हैं। जब तक ओबीसी आरक्षण की स्थिति साफ नहीं होगी, तब तक इन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिलेगा। फिलहाल, जॉइनिंग लेटर का इंतजार करते-करते इनका हौसला जवाब दे चुका है। कोई फैक्ट्री में मजदूरी कर रहा है तो कोई प्राइवेट नौकरी करने को मजबूर है। किसी की शादी टूट गई तो किसी ने खुद को कमरे में बंद कर रखा है। चार केस से समझिए किस तरह 87:13 के फॉर्मूले ने तोड़े सपने राजगढ़ जिले के एक छोटे से गांव के हरिओम दांगी की कहानी उम्मीद के चरम पर पहुंचकर टूटने की है। 2023 में शिक्षक पद पर चयन हुआ। पहली काउंसलिंग वालों को नियुक्ति मिल गई। हरिओम बताते हैं, ‘हमारी दूसरी काउंसलिंग भी हो गई, जिला और स्कूल तक अलॉट हो गया था। बस एक-दो दिन में जॉइनिंग लेटर आना था। हमने भोपाल में कमरा छोड़ दिया, सारा सामान पैक कर लिया। सीधी जाने के लिए ट्रेन का टिकट भी बुक करा लिया था, लेकिन वो लेटर आज तक नहीं आया।’ आज हरिओम भोपाल के नेहरू नगर में 10×12 के एक छोटे से कमरे में रहते हैं। पिता 10 बीघा जमीन पर खेती करते हैं, लेकिन पिछले दो साल से फसल खराब होने से पैसे भेजना मुश्किल हो गया है। हरिओम कहते हैं, ‘खर्च चलाने के लिए कभी यहां-वहां काम करता हूं, कभी दोस्तों से उधार लेता हूं। घर में बड़ा हूं, शादी का दबाव अलग है। मां-पापा पूछते हैं, कब तक पढ़ोगे?’ सिवनी के सौरभ राणा के लिए यह लड़ाई सिर्फ नौकरी की नहीं, बल्कि सामाजिक प्रतिष्ठा की भी बन गई है। उनका भी चयन शिक्षक पद पर हुआ, स्कूल चॉइस फिलिंग तक हो गई। सौरभ कहते हैं, ‘हमने भी बैग पैक कर लिए थे, लेकिन नियुक्ति पत्र नहीं मिला। इसके चलते मेरी तय हुई शादी टूट गई। अब दूसरे रिश्ते भी नहीं आते। लड़की वालों को लगता है कि हम लोग सरकारी नौकरी का झूठ बोलकर रिश्ता कर रहे थे। पिता जी बूढ़े हो रहे हैं, घर की जिम्मेदारी मुझ पर है। गुजारे के लिए 4 हजार रुपए में एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ा रहा हूं, जिसमें खुद का खर्च भी नहीं निकलता।’ राकेश कुशवाहा की आंखों में पुलिस की वर्दी का सपना था, जिसे उन्होंने मेहनत से हासिल भी किया। आरक्षक भर्ती में 153 नंबर लाकर वे चयनित हुए। 152 नंबर वाले की जॉइनिंग हो गई लेकिन 13% होल्ड के नियम ने उनका सपना छीन लिया। आज वे भोपाल से 20 किलोमीटर दूर मंडीदीप की एक फैक्ट्री में लोहे का सामान ढोने को मजबूर हैं। राकेश बताते हैं, ‘पिता लीज पर जमीन लेकर खेती करते हैं। फसल खराब होने से घर से पैसे आने बंद हो गए। कमरा किराया और खाने का खर्च निकालने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है। रोज सुबह 5 बजे उठकर फैक्ट्री जाता हूं, शाम 4 बजे लौटता हूं। इतनी थकान हो जाती है कि अब ठीक से पढ़ भी नहीं पाता। कभी-कभी लगता है कि उम्मीद और हौसला दोनों टूट रहा है।’ भोपाल के विकास यादव की कहानी सबसे झकझोरने वाली है। 10 साल बाद निकली टैक्सेशन असिस्टेंट की भर्ती में चयन होने के बाद भी जब नियुक्ति 13% होल्ड में फंस गई, तो वे गहरे तनाव में चले गए। उन्होंने खुद को एक कमरे में कैद कर लिया है। बड़ी मुश्किल से बात करने पर राजी हुए विकास ने बताया, ‘6 साल से तैयारी कर रहा हूं। घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं है। कॉन्स्टेबल भर्ती में भी होल्ड हो गया था। जब MPPSC में चयन हुआ तो लगा जिंदगी संवर जाएगी, लेकिन यहां भी वही हुआ। अब सामने सिर्फ अंधेरा नजर आता है। घर से निकलना बंद कर दिया है, बार-बार नकारात्मक ख्याल आते हैं।’ कैसे लाया गया 87:13 का फॉर्मूला
साल 2019 से पहले एमपी में सरकारी नौकरियों में OBC को 14%, ST को 20% और SC को 16% आरक्षण दिया जाता था। बाकी बचे 50% पद अनरिजर्व्ड कैटेगरी से भरे जाते थे यानी आरक्षण की सीमा 50% थी। 2019 में तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने ओबीसी आरक्षण को 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी कर दिया। इससे आरक्षण की सीमा बढ़कर 63 फीसदी हो गई। सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि किसी भी राज्य में कुल आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बढ़े हुए आरक्षण पर रोक लगा दी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद एमपी में भर्तियों पर रोक लग गई। भर्तियां न होने से सरकार और राज्य लोक सेवा आयोग दबाव में था। साल 2022 में सामान्य प्रशासन विभाग ने 87:13 फॉर्मूला बनाया और एजेंसियों को इसके आधार पर रिजल्ट जारी करने का सुझाव दिया। इसमें ओबीसी को 14% आरक्षण मिलता है और 13% सीटें होल्ड की जाती हैं। ये सीटें तब तक होल्ड पर रखी जाएंगी, जब तक कि कोर्ट ओबीसी या अनारक्षित वर्ग के पक्ष में फैसला नहीं सुनाता। सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ और क्यों टली सुनवाई?
इस मामले की सुनवाई 24 सितंबर को सुप्रीम कोर्ट में होनी थी। मध्य प्रदेश सरकार ने ओबीसी के पक्ष में 15 हजार पेज के दस्तावेज पेश किए। लेकिन सुनवाई शुरू होते ही सामान्य वर्ग के वकीलों ने यह कहते हुए अतिरिक्त समय मांग लिया कि उन्हें इन दस्तावेजों का अध्ययन करना है। इस पर जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा, ‘हम मामले को लेने के लिए तैयार हैं, लेकिन आप लोग तैयार नहीं हैं। आप लगातार अंतरिम राहत मांग रहे हैं, लेकिन बहस के लिए कोई तैयार नहीं है। आप इस मामले में गंभीर नहीं हैं।’ इसके बाद कोर्ट ने सुनवाई 8 अक्टूबर तक के लिए टाल दी। अब जानिए, आरक्षण पर कोर्ट के फैसले के बाद क्या होगा
एडवोकेट रामेश्वर सिंह कहते हैं कि दो ही संभावना हैं। पहली- अगर सुप्रीम कोर्ट ओबीसी के 27% आरक्षण वाले सरकार के फैसले और याचिकाओं को स्वीकार करता है तो 13% कैटेगरी में होल्ड ओबीसी छात्रों को फायदा मिलेगा। उन्हें नौकरी मिलेगी। दूसरा- अगर सुप्रीम कोर्ट 14% आरक्षण को ही मान्य कर फैसला देता है तो कैंडिडेट्स का चयन मेरिट के आधार पर होगा। चाहे फिर वह किसी भी वर्ग का क्यों न हो। जरूरी ये है कि कोर्ट का फैसला आए। इस मामले को लेकर दोनों पक्ष ठीक तरह से कोर्ट के सामने पैरवी करें। ये खबर भी पढ़ें… MPPSC और ESB के नए भर्ती नियम मध्य प्रदेश सरकार ने भर्ती प्रक्रिया में बदलाव करते हुए मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग (MPPSC) और कर्मचारी चयन मंडल (ESB) के लिए ‘संयुक्त भर्ती परीक्षा नियम-2025’ का मसौदा तैयार कर लिया है। अब उम्मीदवारों को अलग-अलग पदों के लिए बार-बार आवेदन करने और परीक्षा देने की जरूरत नहीं होगी। योग्यता के आधार पर एक ही संयुक्त परीक्षा के जरिए वे कई विभागों और पदों के लिए अपनी दावेदारी पेश कर सकेंगे। पढे़ं पूरी खबर…