सिस्टम से सप्लाई ठप:CGMSC में 200 करोड़ की फाइलें अटकीं, अस्पतालों को 3 साल से मशीनों का इंतजार

प्रदेश के सरकारी अस्पतालों में सप्लाई 2-3 साल से ठप है। इसके चलते सरकारी अस्पतालों तक एमआरआई, सीटी स्कैन, पोर्टेबल एक्सरे, पैरामॉनिटर जैसी जरूरी मशीनें नहीं पहुंच रही है। इनकी राशि 200 करोड़ रुपए से ज्यादा है। इनके लिए शासन से बजट की मंजूरी भी मिल गई। कुछ मामलों में टेंडर प्रक्रिया भी हुई, पर अस्पतालों को मशीनें नहीं मिल पाई। ऐसे में सरकारी अस्पतालों में मरीजों को रेडियोलॉजी की जरूरी जांचों के लिए प्राइवेट लैब में जाना पड़ता है। शासन से मंजूरी के बावजूद अब तक सप्लाई क्यों नहीं हो पाई? भास्कर टीम ने जब पड़ताल की, तो सामने आया कि सिस्टम फाइलों में उलझ कर रह गया है। प्रदेश में दो तरह के सरकारी अस्पताल हैं। एक संचालक स्वास्थ्य सेवाएं अर्थात डीएचएस के अधीन आते हैं। दूसरे वो हैं जो कमिश्नर चिकित्सा शिक्षा के अंतर्गत आते हैं। सीजीएमएससी में तीन साल में चार एमडी बदल चुके हैं। यही हाल संचालक स्वास्थ्य सेवाओं का भी है। इसी महीने में सीजीएमएसी ने डीकेएस, रायपुर ,डीकेएस, अंबिकापुर, जशपुर और बिलासपुर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पतालों के लिए कुछ एक उपकरणों की निविदा निकाली है। 3 साल से डीएचएस से मांग ही नहीं
पड़ताल में पता चला है कि छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेज कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीजीएमएससी) में अभी संचालक स्वास्थ्य सेवाओं के 52 करोड़ के सीटी स्कैन व एमआरआई मशीनों के प्रस्ताव रुके हैं। इसके चलते तीन साल से संचालक स्वास्थ्य सेवाओं की ओर से सीजीएमएससी को उपकरण की खरीदी का प्रस्ताव ही नहीं भेजा रहा है। दरअसल, 2-3 साल पहले डीएचएस की ओर से जिला अस्पतालों के लिए 15 सीटी स्कैन और एक एमआरआई मशीनों की खरीद का प्रस्ताव भेजा गया था। अभी तक केवल 40 करोड़ की 9 सीटी स्कैन मशीनों की खरीदी हो पाई है। बलौदाबाजार के लिए 15 करोड़ की एमआरआई मशीन की खरीदी की प्रक्रिया पेडिंग हैं। मेडिकल कॉलेजों से जुड़े अस्पतालों में 150 करोड़ की मशीनें नहीं आईं प्रदेश में गंभीर स्थिति में सबसे ज्यादा मरीज सरकारी मेडिकल कॉलेजों से संबद्ध अस्पतालों में जाते हैं। राजधानी रायपुर के डॉ. अंबेडकर अस्पताल समेत सरकारी मेडिकल कॉलेजों में 150 करोड़ के मेडिकल उपकरणों की खरीदी पेडिंग हैं। इसमें सबसे ज्यादा पेंडेंसी अंबिकापुर मेडिकल कॉलेज से संबद्ध अस्पताल के उपकरणों की है। यहां करीब 35 करोड़ के उपकरण खरीदी का बजट मंजूर हुआ था। कोरबा के अस्पताल का 25 करोड़, महासमुंद के अस्पताल के करीब 20 करोड़ के चिकित्सा उपकरणों की खरीदी अटकी हुई है। ये जिम्मेदार – तत्कालीन संचालक स्वास्थ्य सेवाएं, तत्कालीन डीएमई, तत्कालीन एमएडी सीजीएमएससी फाइलों में उलझ रही प्रक्रिया केंद्रीकृत सिस्टम नहीं, टेंडर में देरी
पड़ताल में पता चला है कि सीजीएमएससी में फाइलों के मूवमेंट का आधा सिस्टम ऑनलाइन और आधा ऑफलाइन है। सीजीएमएससी का दफ्तर भी बार-बार बदलता रहा। इसके चलते 2020 के पहले के प्रस्तावों से जुड़ी फाइलें भी कई बार नहीं मिल पाती है। मेडिकल कॉलेजों के डीन संबद्ध अस्पतालों के अधीक्षक के बगैर किसी केंद्रीय समन्वय, तकनीकी जांच और क्वांटिटी चैक के प्रस्ताव खुद से सीजीएमएससी को भेज रहे हैं। एक ही उपकरण की मांग अलग-अलग फॉर्मेट और तारीखों में भेजी जा रही है। सीजीएमएससी, सीएमई और डीएचएचसी के बीच फाइलें घूमती रहती हैं। एक ही उपकरण की खरीदी के लिए कई सारे टेंडर निकाले जा रहे हैं। जरूरत के उपकरणों के लिए बार बार नई फाइलें शुरु की जा रही है। स्क्रूटनी, क्वालिटी चैक, नोटिंग और अनुमोदन के लिए मैनुअल फाइल मूवमेंट ही है। इससे भी देरी हो रही है। देरी के लिए अर्थात पेडेंसी के लिए जिम्मेदारी स्पष्ट नहीं है। उपकरण की खरीदी के लिए कोई निर्धारित समय सीमा नहीं है। इसका रिव्यू भी नहीं होता है। सीधी बात – दीपक म्हस्के, चेयरमेन, सीजीएमएसी 200 करोड़ की उपकरणों की खरीदी बीते 3 साल से पेंडिग क्यों है?
पेंडेंसी के लिए तकनीकी वजहें ज्यादा रही। उपकरणों की खरीदी के लिए डीएचएस सीएमई से स्पेसिफिकेशन आते हैं। उसके अनुरूप सप्लायर नहीं मिल पाते हैं। इसलिए टेंडर प्रक्रिया रद्द हुई। विभागों से एक ही उपकरण के कई प्रस्ताव आ जाते हैं। एकरूपता से ये दिक्कत हट जाएगी। फाइलों के सिस्टम में खामियां हैं?
– इसमें हम लगातार सुधार कर रहे हैं। फाइलों की मंजूरी की प्रक्रिया तेज होने के साथ हम टेंडर की प्रक्रिया की समयावधि भी तय की जा रही है। ताकि आपूर्ति में कोई देरी न हो। 200 करोड़ के उपकरणों की खरीदी की जो प्रक्रिया लंबित है?
– हमने डीएचएस सीएमई से लंबित प्रस्ताव मंगवा लिए हैं। हम जल्द ही खरीदी करने जा रहे हैं।

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