आज वर्ल्ड हीमोफीलिया डे है। वर्ल्ड फेडेरेशन ऑफ हीमोफीलिया का अनुमान है कि दुनिया में लगभग 11 लाख लोगों को हीमोफीलिया है और इनमें से ज्यादातर लोग अनडाइग्नोज्ड हैं यानी उन्हें पता ही नहीं है कि उन्हें हीमोफीलिया है। नेशनल ब्लीडिंग डिसऑर्डर्स का अनुमान है कि दुनिया में 4 लाख 18 हजार लोगों को गंभीर हीमोफीलिया है और उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं है। हीमोफीलिया एक रेयर, अनुवांशिक ब्लड डिसऑर्डर है। इसमें शरीर में ब्लड की क्लॉटिंग के लिए जरूरी खास प्रोटीन की मात्रा बहुत कम हो जाती है या होती ही नहीं है। इस प्रोटीन को क्लॉटिंग फैक्टर भी कहते हैं। जब क्लॉटिंग फैक्टर्स कम होते हैं या नहीं होते हैं तो चोट लगने या कट लगने पर खून नहीं रुकता है और बहता रहता है। इसे रोकना बहुत मुश्किल होता है। कई बार तो लोगों की मौत भी हो जाती है। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज हीमोफीलिया की बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- क्या है हीमोफीलिया? सर्वोदय कैंसर इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर डॉ. दिनेश पेंढारकर कहते हैं कि क्या आपने कभी गौर किया है कि चोट लगने पर खून अपने आप रुक जाता है? ये इसलिए होता है क्योंकि शरीर में कुछ खास तरह के प्रोटीन मौजूद होते हैं, जिन्हें क्लॉटिंग फैक्टर्स कहा जाता है। हीमोफीलिया के लक्षण क्या होते हैं? हीमोफीलिया के लक्षण व्यक्ति की उम्र और बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग हो सकते हैं। इसके कुछ सामान्य संकेत पहचाने जा सकते हैं। इसका सबसे आम लक्षण ये है कि मामूली चोट लगने पर भी देर तक खून बहता रहता है। शरीर में अक्सर नीले या काले रंग के निशान दिखते हैं, जो बिना किसी खास वजह के बन सकते हैं। इसके सभी लक्षण ग्राफिक में देखिए: हीमोफीलिया क्यों होता है? डॉ. दिनेश पेंढारकर कहते हैं कि हीमोफीलिया जन्मजात बीमारी है। अगर परिवार में किसी को ये बीमारी है तो आने वाली पीढ़ियों को भी हो सकती है। इसे मेडिसिन में जेनेटिक डिसऑर्डर कहा जाता है। हालांकि कुछ रेयर मामलों में यह बीमारी बाद में भी विकसित हो सकती है। अगर शरीर का इम्यून सिस्टम ब्लड के क्लॉटिंग फैक्टर्स को पहचानने से इनकार कर देता है और उन पर हमला करने लगता है तो इस कंडीशन को एक्वायर्ड हीमोफीलिया कहते हैं। इसका इलाज बहुत मुश्किल होता है। कितने तरह का होता है हीमोफीलिया? हीमोफीलिया 3 तरह का होता है। ब्लड में कई क्लॉटिंग फैक्टर होते हैं, जैसे- VIII, IX फैक्टर। ये VIII और IX फैक्टर खास तरह के प्रोटीन हैं, जो क्लॉटिंग के लिए जरूरी होते हैं। हीमोफीलिया के प्रकार इनकी कमी के आधार पर ही बांटे गए हैं। ग्राफिक में देखिए- हीमोफीलिया से क्या कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं? हीमोफीलिया से कई गंभीर कॉम्प्लिकेशन हो सकते हैं। सबसे आम और खतरनाक समस्या इंटरनल ब्लीडिंग होती है, जो जोड़ों में, मसल्स में या मस्तिष्क में हो सकती है। 1. इंटरनल ब्लीडिंग हीमोफीलिया में सबसे बड़ा खतरा इंटरनल ब्लीडिंग का होता है। जॉइंट्स में बार-बार ब्लीडिंग होने से सूजन, दर्द और चलने-फिरने में दिक्कत होती है। अगर समय रहते इलाज न हो तो जॉइंट्स हमेशा के लिए डैमेज हो सकते हैं। 2. ब्रेन हेमरेज यह एक जानलेवा कंडीशन है। यह बहुत रेयर होती है, लेकिन अगर होती है तो बहुत गंभीर होती है। इसमें लगातार सिरदर्द, उल्टी, डबल विजन, बेहोशी जैसे लक्षण दिखते हैं। इसमें तुरंत इमरजेंसी इलाज की जरूरत होती है। 3. बहुत ज्यादा ब्लीडिंग चोट, सर्जरी या दांत निकलवाने जैसे सामान्य कामों के बाद भी बहुत ज्यादा खून बहता है। इससे एनीमिया और कमजोरी हो सकती है। कई बार ब्लड चढ़ाने की जरूरत पड़ सकती है। 4. इनहिबिटर्स बनना कई बार एंटीबॉडीज शरीर में मौजूद क्लॉटिंग फैक्टर को ही नष्ट कर देती हैं। इसमें इलाज बेअसर हो जाता है और ब्लीडिंग को कंट्रोल करना बहुत मुश्किल हो जाता है। 5. डेंटल और सर्जिकल कॉम्प्लिकेशन दांतों का इलाज या सर्जरी करवाना भी मुश्किल हो सकता है क्योंकि छोटे से प्रोसीजर में भी बहुत खून बह सकता है। 6. मसल्स और टिश्यू डैमेज अगर ब्लीडिंग मसल्स या टिश्यू के अंदर होती है और बार-बार होती रहती है तो वहां सख्त गांठ बन सकती है। इससे नसें दब सकती हैं और अंग सुन्न पड़ सकते हैं। इसे डाइग्नोज कैसे करते हैं? अगर किसी व्यक्ति में ऊपर बताए लक्षण दिखते हैं तो डॉक्टर सबसे पहले मेडिकल हिस्ट्री जानने की कोशिश करते हैं। खासतौर पर फैमिली हिस्ट्री पूछते हैं। इसके बाद कुछ जरूरी ब्लड टेस्ट किए जाते हैं: हीमोफीलिया का इलाज क्या है? डॉ. दिनेश पेंढारकर कहते हैं कि अभी तक हीमोफीलिया का कोई स्थाई इलाज नहीं है, लेकिन अच्छी बात ये है कि इसे मैनेज किया जा सकता है। इलाज का सबसे कारगर तरीका है- रिप्लेसमेंट थेरेपी। इसमें शरीर को वो क्लॉटिंग फैक्टर इंजेक्शन के जरिए दिया जाता है, जिसकी उसमें कमी हो गई है। इसके अलावा एंटीफाइब्रिनोलिटिक दवाएं भी दी जाती हैं, जो शरीर में बने खून के थक्कों को टूटने से रोकती हैं। गंभीर मरीजों को नियमित रूप से ये फैक्टर्स दिए जाते हैं ताकि किसी भी ब्लीडिंग से पहले ही उसे रोका जा सके। किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है? हीमोफीलिया के पेशेंट्स को अपना खास ख्याल रखना चाहिए: