सेहतनामा- भारत में रोज 52 प्रेग्नेंट महिलाओं की मौत:दुनिया में हर 2 मिनट में 1 मौत, क्या हैं 7 बड़े कारण, जानें कैसे बचेगी जान

साल 2023 में प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान लगभग 2.6 लाख महिलाओं की मौत हुई। इसका मतलब है कि हर दो मिनट में एक महिला की मौत हुई। ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ और वर्ल्ड बैंक जैसी संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों की एक रिपोर्ट में सामने आए हैं। भारत में 2023 में प्रेग्नेंसी या डिलीवरी के दौरान लगभग 19,000 महिलाओं की मौत हुई। इसका मतलब है कि हर दिन औसतन 52 महिलाओं की मौत प्रेग्नेंसी से संबंधित कॉम्प्लिकेशन के कारण हुई। ज्यादातर मामलों में डायबिटीज और हार्ट डिजीज जैसी क्रॉनिक डिजीज के कारण प्रेग्नेंट महिलाओं की मौत होती है। कुछ मामलों में साफ-सफाई न रखने और इंफेक्शन के कारण मौत हुई। इसलिए ‘सेहतनामा’ में आज मैटरनल डेथ के बारे में बात करेंगे। साथ ही जानेंगे कि- दुनिया की आधी मैटरनल डेथ सिर्फ 4 देशों में पूरी दुनिया में हर साल हो रही कुल मैटरनल मौतों की आधी सिर्फ चार देश- नाइजीरिया, भारत, कांगो और पाकिस्तान में होती हैं। इसमें भी सबसे ज्यादा मौतें नाइजीरिया में होती हैं और भारत इस मामले में दूसरे नंबर पर है। मैटरनल डेथ में हुआ सुधार साल 2000 से 2023 के बीच पूरी दुनिया में मैटरनल डेथ में 40% की गिरावट आई है। इसकी मुख्य वजह ये है कि इस दौरान स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बढ़ी है और क्वालिटी में सुधार हुआ है। भारत में भी सुधरी हालत, पर चीन से बहुत पीछे भारत में मातृ मृत्यु अनुपात (MMR) यानी हर 1 लाख जीवित बच्चों के जन्म पर होने वाली माताओं की मौत का रेशियो साल 2000 में 362 था। यह 2023 में घटकर 80 रह गया है। इसका मतलब है कि इस बीच 78% की गिरावट दर्ज की गई है। इस दौरान चीन का MMR 56 से घटकर 16 रह गया है। चीन भारत की लगभग बराबर की आबादी वाला देश है और इस मामले में वह बहुत आगे है। क्यों होती है गर्भवती महिलाओं की मौत? गायनेकोलॉजिस्ट डॉ. पंखुड़ी गौतम कहती हैं कि मातृ मृत्यु अनुपात में भले ही कुछ सुधार हुआ है, लेकिन अभी भी दुनिया के कई हिस्सों में महिलाओं के लिए प्रेग्नेंसी खतरनाक बनी हुई है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में भी स्थितियां बहुत अच्छी नहीं हैं। ज्यादातर मामलों में बहुत ज्यादा ब्लीडिंग, प्री-एक्लेम्पसिया यानी प्रेग्नेंसी में हाई ब्लड प्रेशर और यूरिन में प्रोटीन के कारण महिलाओं की मौत हो रही है। सभी कारण ग्राफिक में देखिए- सेफ प्रेग्नेंसी और डिलीवरी के लिए क्या करें? डॉ. पंखुड़ी गौतम कहती हैं कि इसके लिए सबसे जरूरी चीज सही केयर है। इसकी शुरुआत प्रेग्नेंसी से पहले ही हो जाती है- प्रेग्नेंसी से पहले की केयर कंसीव करने से पहले की तैयारी बहुत जरूरी होती है, ताकि मां और बच्चे दोनों की सेहत अच्छी रहे। अगर पहले से स्वस्थ है तो प्रेग्नेंसी के दौरान कॉम्प्लिकेशन भी कम होते हैं। प्रेग्नेंसी की प्लानिंग शुरू करने के 3 महीने पहले से ये आदतें अपनाएं: प्रेग्नेंसी के दौरान केयर प्रेग्नेंसी के दौरान डॉक्टर से नियमित चेकअप बहुत जरूरी होते हैं, ताकि आपकी और बच्चे की सेहत पर नजर रखी जा सके। डॉक्टर विजिट का सही शेड्यूल: हर विजिट में क्या होता है? डिलीवरी के बाद की केयर डिलीवरी के बाद का समय भी बहुत नाजुक होता है। यह 6 से 8 हफ्तों तक का होता है जिसे पोस्टपार्टम पीरियड कहते हैं। इस दौरान महिला के शरीर और मन दोनों में कई बदलाव होते हैं। इसलिए उचित केयर बेहद जरूरी होती है। सही न्यूट्रिशन वजाइनल केयर डिलीवरी के बाद वजाइना में कुछ सामान्य दिक्कतें हो सकती हैं: 6 हफ्ते बाद फॉलोअप लें डॉ. पंखुड़ी गौतम कहती हैं कि डिलीवरी 6 हफ्ते बाद डॉक्टर से फॉलोअप जरूर लें, ताकि यह पता लगाया जा सके कि शरीर पूरी तरह ठीक हो रहा है या नहीं। इस दौरान 4 से 6 हफ्तों तक यौन संबंध से बचना चाहिए ताकि वजाइना और शरीर को ठीक होने का पूरा समय मिल सके। इसके अलावा साफ-सफाई का खासतौर पर ध्यान रखें। इस दौरान इन्फेक्शन का जोखिम भी ज्यादा होता है। …………………….
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