चिकित्सा क्षेत्र में तकनीकी प्रगति के साथ, अब हीमोग्लोबिन की जांच के लिए खून निकालने की आवश्यकता नहीं होगी। एक नई डिवाइस, ‘स्पॉट मेसिमो’ के माध्यम से कुछ ही सेकंड में बिना किसी दर्द के हीमोग्लोबिन स्तर की जांच संभव होगी। राजेंद्र आयुर्विज्ञान संस्थान (रिम्स) में इस डिवाइस की गुणवत्ता और विश्वसनीयता पर गहन शोध किया जा रहा है। मिली जानकारी के अनुसार, यह डिवाइस पल्स ऑक्सीमीटर की तरह काम करती है। इसे उंगली पर लगाने से यह ऑक्सीजन स्तर, हृदय गति, पल्स रेट के साथ-साथ हीमोग्लोबिन का स्तर भी मापती है। पारंपरिक विधियों में जहां खून का नमूना लेकर पैथोलॉजी लैब में जांच की जाती है, जिसमें 2 से 5 घंटे तक का समय लगता है। वहीं इस डिवाइस के उपयोग से कुछ ही सेकंड में हीमोग्लोबिन का लेवल देखा जा सकता है। यदि इस रिसर्च से डिवाइस की सटीकता और विश्वसनीयता प्रमाणित होती है तो इसे व्यापक स्तर पर लागू किया जा सकता है। इससे न केवल शहरी क्षेत्रों में, बल्कि ग्रामीण और दूरस्थ क्षेत्रों में भी लोगों को लाभ मिलेगा। रिसर्च सफल रहा तो मरीजों को मिलेंगे ये लाभ. 1. तेजी से परिणाम : पारंपरिक विधियों में जहां ब्लड सैंपल देने के बाद रिपोर्ट आने में घंटों लगते हैं, वहीं इस डिवाइस से कुछ ही सेकंड में परिणाम मिल सकते हैं, जिससे उपचार में देरी नहीं होगी। 2. पेन-फ्री प्रक्रिया : खून निकालने की जरूरत नहीं होने के कारण यह प्रक्रिया दर्द रहित होगी, जो बच्चों के लिए लाभदायक है। 3. सुविधाजनक उपयोग : यह डिवाइस छोटी और पोर्टेबल है, जिससे इसे कहीं भी आसानी से उपयोग में लाया जा सकता है। विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में। 4. बार-बार जांच की सुविधा : मरीज नियमित अंतराल पर बिना किसी असुविधा के अपने हीमोग्लोबिन स्तर की जांच कर सकते हैं, जिससे निरंतर निगरानी संभव होगी। डिवाइस की एक्यूरेसी पर हो रहा रिसर्च रिम्स पीएसएम विभाग के हेड डॉ. विद्यासागर के नेतृत्व में इस डिवाइस की विश्वसनीयता और सटीकता पर शोध किया जा रहा है। इस रिसर्च प्रोजेक्ट में पीएसएम विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेश कुमार, डॉ. तुषार और अन्य विशेषज्ञ शामिल हैं। वे यह जांच रहे हैं कि क्या यह डिवाइस भारतीय परिस्थितियों में, जहां हर 10 में से 4 महिलाएं लो-हीमोग्लोबिन या एनीमिया से पीड़ित हैं। वहां ऐसी समस्या की शीघ्र पहचान व प्रबंधन करने में मदद मिलेगी।