जालंधर अप्रैल के अंत तक हल्दी की बिजाई की जा सकती है। हल्दी की गांठें फूटने में लंबा समय लेती हैं। इसलिए इसे प्रकाश और बार-बार सिंचाई की जरूरत होती है। इसे खरपतवार से मुक्त रखने के लिए 1-2 गुड़ाई की जरूरत होती है। खेत में समान मात्रा में प्रति एकड़ 36 क्विंटल पराली मल्च भी डाली जा सकती है। जब पूरा पौधा पीला और सूख जाए तो यह फसल पकने का संकेत है। यह नवंबर-दिसंबर में कटाई के लिए तैयार हो जाती है। मिट्टी से हल्दी के पौधों को उखाड़कर गांठें निकाली जाती हैं। इनको साफ कर लिया जाता है। उसके बाद इनको एक बड़े बर्तन (वेसल) में डालकर उसमें पर्याप्त पानी डाला जाता है, ताकि सभी गांठें डूब जाएं। इसे एक घंटा उबाला जाता है, ताकि गांठें नम्र हो जाएं। यदि गांठों को 15 पाउंड प्रति वर्ग इंच के दबाव के साथ उबाला जाता है तो इसे 20 मिनट लगेंगे। उसके बाद उबाली गई गांठों को धूप में सुखाया जाता है। छोटे पैमाने पर सूखी गांठों को पोलिश करने के लिए इनको कठोर स्तह पर रगड़ा जाता है। कमर्शियल पैमाने पर इसके लिए विशेष पोलिश ड्रम बाजार में उपलब्ध हैं।