2015 में रायपुर में 18 करोड़ की लागत से दो हॉकी स्टेडियम बने थे, जिनमें एस्ट्रोटर्फ बिछाया गया था। यह रायपुर ही नहीं, पूरे प्रदेश की पुरानी मांग थी, क्योंकि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर के मैच इसी टर्फ पर होते हैं। तब लगा कि लुप्त होती हॉकी को नया जीवन मिलेगा। लेकिन 10 सालों के एक टूर्नामेंट के अलावा आज तक यहां कोई बड़ा आयोजन नहीं हुआ। आसपास बने दो स्टेडियमों की हालत खराब है। कुर्सियां टूट गई हैं। इनके अलावा कोटा स्टेडियम की भी हालत ठीक नहीं है। इनकी मरम्मत पर खेल विभाग के 1.91 करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं। राज्योत्सव के समय हाई मास्ट लाइट रिपेयर करने पर 5 लाख रुपए खर्च किए गए थे। कुल मिलाकर दो स्टेडियम उपयोगी कम, खर्चीले ज्यादा साबित हो रहे हैं। किराए पर मिलता है स्टेडियम
खेल विभाग के लोगों का कहना है कि यहां सुबह-शाम प्रैक्टिस होती है। सुबह 6.30 से 9.30 बजे और शाम को 4.30 से 7.30 बजे तक अभ्यास होता है। कुछ निजी संस्थाएं मैच कराने के लिए स्टेडियम को किराए से लेती हैं। उनसे एक दिन का किराया 10 हजार रुपए लिया जाता है। सरकारी आयोजन के लिए पांच हजार रुपए लिए जाते हैं। इसमें बिजली का खर्च शामिल होता है। इधर, खिलाड़ियों के लिए जगह नहीं…
हॉकी स्टेडियम के बगल में ही साइंस कॉलेज ग्राwउंड है। यहां सुबह क्रिकेट खिलाड़ियों को खेलने के लिए इंतजार करना पड़ता है। एक साथ दर्जनभर से अधिक टीमें खेलते हुए देखी जा सकती हैं। खेलने वाला कोई नहीं, फिर करोड़ों खर्च
दो स्टेडियमों में जहां पर खिलने के लिए खिलाड़ी नहीं मिल रहे है। स्टेडियम की कुर्सियां खराब हो गई जिसकी मरम्मत पर खेल विभाग 1.91 करोड़ रुपए खर्च कर दर्शकों के बैठने के लिए नए कुर्सियां लगवा रही और डेंटिंग पेंटिंग के साथ ही इंटरर्नल कार्य करवा रही है। करोड़ों का सामान हो गया खराब
10 साल पहले उद्धाटन के बाद आठ देशों के प्रीमियर लीग मैच होने के बाद से स्टेडियम में कोई भी नेशनल और इंटरनेशनल मैच नहीं और देखरेख के अभाव से यहां पर लगे कुर्सियां खराब हो गई। इसको निकालकर परिसर में ही फेंक दिया गया।