18 साल से पढ़ा रही पारा शिक्षिका तबस्सुम की कैंसर से हुई मौत, 28 जुलाई को आया परिणाम

आरिफ हुसैन अख्तर| गुमला झारखंड की शिक्षा व्यवस्था की सुस्ती ने एक और शिक्षिका की जिंदगी छीन ली। गुमला की तबस्सुम आरा का नाम शिक्षक नियुक्ति परीक्षा 2024 के परिणाम में चयनित उम्मीदवारों में आया, लेकिन वह यह घड़ी देखने से पहले ही दुनिया छोड़ गईं। 28 जुलाई 2025 को परीक्षा का परिणाम आया। तब तक तबस्सुम का 12 जून को कैंसर से निधन हो चुका था। वे 2007 से पारा शिक्षक के रूप में पढ़ा रही थीं। 2017 में उन्होंने जेटीईटी पास किया। इसके बाद 2024 में आयोजित परीक्षा में सफल रहीं। दस्तावेज सत्यापन की तारीख 2 अगस्त 2025 तय हुई थी, लेकिन तब तक वे जीवित नहीं रहीं। तबस्सुम के पीछे दो बेटियां रह गईं। एक 13 साल की, दूसरी 8 साल की। दोनों अब मामा के घर रह रही हैं। मां के सपनों की कहानियां वहीं से सुन रही हैं। तबस्सुम चाहती थीं कि बेटियां अंग्रेजी माध्यम में पढ़ें। आत्मनिर्भर बनें। पति को भी बुलाकर एक साथ सम्मानजनक जीवन जिएं। यह सपना अधूरा रह गया। झारखंड एकीकृत पारा शिक्षक संघ के जिला अध्यक्ष अर्जुन साय ने कहा, सरकार ने समय पर नियुक्ति दी होती तो तबस्सुम आज जिंदा होतीं। 18 साल पढ़ाने के बाद भी उन्हें अधिकार नहीं मिला। यह शर्मनाक है। मरणोपरांत नियुक्ति, पेंशन और सहायता मिलनी चाहिए। प्रगतिशील शिक्षक मोर्चा के संयोजक सुमित नंद ने कहा, यह एक शिक्षिका की नहीं, व्यवस्था की नैतिक हार है। उग्रवाद पीड़ितों को राहत मिलती है, तो शिक्षिका की मौत पर चुप्पी क्यों। प्राथमिक शिक्षक संघ के महासचिव मंगलेश्वर उरांव ने कहा, यह संवेदनहीन प्रशासन की भयावह तस्वीर है। वरिष्ठ अधिवक्ता आफताब चौधरी ने बताया, झारखंड हाईकोर्ट ने हाल ही में 15 साल या अधिक सेवा देने वाले पारा शिक्षकों को सेवांत लाभ और पेंशन देने का निर्देश दिया है। यह फैसला तबस्सुम जैसे मामलों के लिए मिसाल बन सकता है। उन्होंने कहा, यह मामला अनुच्छेद 14 और 21 के तहत कानूनी राहत योग्य है। बिहार पेंशन नियमावली 1950 और राज्य सरकार के 1969 व 1975 के संकल्प इसमें मददगार हैं। तबस्सुम की मौत अब एक घटना नहीं, एक सवाल बन गई है। यह झारखंड की शिक्षा व्यवस्था, नियुक्ति प्रक्रिया और प्रशासनिक जवाबदेही पर सवाल खड़ा करती है। अगर सरकार ने अब भी मरणोपरांत नियुक्ति, सेवांत लाभ और बच्चियों के संरक्षण पर ठोस कदम नहीं उठाया, तो यह न्याय की एक और अधूरी कहानी बन जाएगी। यह घटना बताती है कि प्रशासनिक प्रक्रिया में संवेदना और समयबद्धता कितनी जरूरी है। अब देखना है कि सरकार इस पुकार को सुनती है या नहीं।

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