22 साल में पहली बार टूटी परंपरा, जत्थेदार ने अरदास के बाद न संदेश दिया, न सम्मान

भास्कर एक्सपर्ट ऑपरेशन ब्लू स्टार की बरसी के दिन श्री अकालतख्त साहिब पर हर साल अरदास के बाद जत्थेदार की ओर से कौम के नाम संदेश देने और ऑपरेशन में मारे गए लोगों के परिवारों के सम्मान की 22 साल से चली आ रही परंपरा शुक्रवार को टूट गई। दमदमी टकसाल और पीड़ित परिवारों के विरोध के कारण टकराव टालने के लिए जत्थेदार कुलदीप सिंह गड़गज्ज ने श्री अकालतख्त की फसील से सिख कौम को न संबोधित किया और न ही पीड़ित परिवारों का सम्मान किया, इस वजह से इस मौके पर टकराव टल गया। संदेश और सम्मान की परंपरा साल 2003 में शुरू से जारी थी। सिंह साहिब ने अरदास के दौरान ही सिखों की एकजुटता का संदेश दिया। वहीं एसजीपीसी प्रधान हरजिंदर सिंह धामी ने इस ऑपरेशन के दौरान मारे गए लोगों के पारिवारिक सदस्यों को श्री अकालतख्त साहिब से सिरोपा देकर सम्मानित किया। इस बार श्री हरमंदर साहिब परिसर में नंगी तलवारें लेकर गर्मख्याली संगठनों ने परिक्रमा नहीं की। हालांकि श्री अकाल तख्त साहिब पर समागम के दौरान खालिस्तान जिंदाबाद के नारे लगते रहे। निहंग जत्थेबंदियों ने दमदमी टकसाल के पूर्व प्रमुख जरनैल सिंह भिंडरावाले की तस्वीरों वाले पोस्टर लेकर ऑपरेशन ब्लू ​स्टार के खिलाफ गुस्सा जताया। विरोध जारी रहेगा : टकसाल के प्रमुख भाई हरनाम सिंह खालसा ने समागम के बाद टकराव टालने के लिए एसजीपीसी प्रधान धामी की सराहना की, लेकिन उन्होंने कहा कि टकसाल जत्थेदार गड़गज्ज का विरोध जारी रखेगी। फसील से कौम के नाम संदेश नहीं दिए जाने से एसजीपीसी व गर्मख्यालियोंं के बीच बढ़ेंगी दूरियां ‌Q. जत्थेदार का अरदास में ही संदेश देने को क्या एसजीपीसी प्रधान, टकसाल प्रमुख और गड़गज्ज की आपसी सहमति माना जा सकता है? A. गड़गज्ज की ओर से अरदास किए जाने पर खालसा ने कोई एतराज नहीं जताया, बल्कि वे बिल्कुल उनके पास खड़े रहे। इससे साफ है कि दोनों पक्षों में सहमति बनी थी। इस सियासी खेल के पीछे राजनीतिक नेतृत्व की अहम भूमिका नजर आती है। Q. संदेश की 22 साल पुरानी परंपरा टूटने के क्या मायने हैं? क्या अब आगे इस परंपरा पर विराम लग जाएगा? इसका क्या असर पड़ेगा? A. संदेश और शहीदों के परिवारों को सम्मानित न करने की परंपरा पर आगे विराम लगने की पूरी संभावना है। इसमें कोई हैरानी नहीं होगी अगर अब जत्थेदारों की बजाय एसजीपीसी प्रधान सम्मान करें। मगर ऐसा करने से गर्मख्याली सिख संगठनों और शिरोमणि अकाली दल में दूरियां बढ़ेंगी। यह स्थिति अकाली दल के लिए भाजपा से गठबंधन करने की दिशा में अनुकूल साबित हो सकती है। आगे क्या : कार्यकारी कमेटी की बैठक 9 को, गड़गज्ज पर आ सकता है फैसला एसजीपीसी की बैठक 9 जून को होनी है। अब शुक्रवार के घटनाक्रम से बात साफ होती नजर आ रही है कि बैठक में गड़गज्ज पर फैसला लेकर पंथक संगठनों और एसजीपीसी के बीच जारी विवाद पर विराम लगाया जा सकता है। श्री दरबार साहिब में प्रदर्शन करती संगत। टकराव टला…जत्थेदार गड़गज्ज ने खालसा पंथ में एकता की अरदास की, अलग से संदेश नहीं दिया जत्थेदार गड़गज्ज ने श्री अकालतख्त साहिब पर अरदास में खालसा पंथ को श्री अकालतख्त के झंडे तले एकजुट होने और सिख पंथ में एकता का आह्वान किया। जत्थेदार ने खालसा पंथ में दृढ़ता, एकता, सद्भाव और एकजुटता के लिए योद्धाओं और शहीदों के मार्ग पर चलने की शक्ति प्रदान करने की अरदास की। उन्होंने भाई बलवंत सिंह राजोआणा के साथ-साथ बंदी सिखों की रिहाई की भी अरदास की। उन्होंने कहा, पंजाब युद्ध का अखाड़ा नहीं बनना चाहिए। उन्होंने प्रार्थना की कि टकसाल, धार्मिक संगठन, निहंग सिंह संप्रदाय हमेशा खालसा निशान साहिब के तहत एकजुट रहें। एस पुरुषोत्तम सिंह, सिख मामलों के जानकार

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