धर्मेंद्र की 90वीं बर्थ एनिवर्सरी, दारा सिंह से कुश्ती सीखी:गिरते पेड़ को रोककर लोगों की जान बचाई, ट्रक ड्राइवर से कपड़े उधार लेकर शूटिंग की

भारतीय सिनेमा के इतिहास में धर्मेंद्र का नाम ऐसे कलाकार के तौर पर आता है, जिनकी मुस्कान, सादगी और इंसानियत आज भी लोगों के दिलों में गूंजती है। पर्दे पर उनके मजबूत किरदारों के पीछे एक ऐसा इंसान था जो रिश्तों, संस्कारों और लोगों के प्रति अपने प्यार के लिए जाना जाता था। धर्मेंद्र की 90वीं बर्थ एनिवर्सरी पर पद्मश्री भजन सम्राट अनूप जलोटा, बांसुरी वादक पद्मश्री पंडित रोनू मजूमदार और एड गुरु-फिल्ममेकर प्रभाकर शुक्ल से खास बातचीत की । अनूप जलोटा ने बताया कि धर्मेंद्र को बॉडी बिल्डिंग का शौक बचपन से ही था। पंडित रोनू मजूमदार और प्रभाकर शुक्ल के धर्मेंद्र की फिल्मों की शूटिंग का किस्सा शेयर करते हुए कहा कि ‘लोहा’ फिल्म की शूटिंग के दौरान धर्मेंद्र ने गिरते पेड़ को अपने कंधे से रोककर क्रू मेंबर की जान बचाई थी। यहां तक कि धर्मेंद्र ने एक फिल्म की शूटिंग को पूरा करने के लिए ट्रक ड्राइवर से मांग कर कपड़े पहने थे। आईए जानते हैं धर्मेंद्र से जुड़ी कुछ खास यादें, इन्हीं लोगों की जुबानी.. पिता से मिले संस्कार अपने बेटों को दिया पद्मश्री भजन सम्राट अनूप जलोटा कहते हैं- मैं और धर्मेंद्र फगवाड़ा के रहने वाले हैं। मेरे पिताजी एक संगीतकार थे, और धर्मेंद्र के पिताजी आर्य समाज से जुड़े थे और एक प्रोफेसर थे। उनके संस्कार धर्मेंद्र में थे। वही संस्कार और स्वभाव उनके दोनों बेटों में भी दिखता है। धर्मेंद्र बचपन से ही एक्टिंग पसंद करते थे। जब उन्होंने एक फिल्म में दिलीप जी को देखा, तबसे वे उनसे जैसे बनने की इच्छा रखते थे। जब धर्मेंद्र मुंबई गए, तो मेरे पापा मुझे उनसे मिलवाने लिए गए थे। वे खार में एक छोटा फ्लैट में रहते थे। मेरे पापा ने धर्मेंद्र के पिता जी से कहा कि “अनूप लखनऊ से आया है, कृपया धर्मेंद्र को बुला लीजिए, वह उनसे मिलना चाहता है।”जब धर्मेंद्र अंदर से आए, तो ऐसा लगा जैसे कमरे की रोशनी चार गुना हो गई हो। वे लंबे, गोरे और बहुत सुंदर थे। उनके अंदर एक अच्छे अभिनेता के सभी गुण थे। बॉडी बिल्डिंग का शौक बचपन से ही था धर्मेंद्र को बॉडी बिल्डिंग का शौक उन्हें शुरू से ही था। फिल्म इंडस्ट्री में वही इस कल्चर को लेकर आए। इसके पहले कोई इन सब पर ध्यान नहीं देता था। चाहे वो देवानंद हों या दिलीप कुमार किसी को कोई मतलब नहीं था। लेकिन धर्मेंद्र ने बताया कि एक्टर के लिए वर्कआउट करना भी जरूरी है। धर्मेंद्र जी सबकी मदद करते थे, लेकिन इस बात का कभी जिक्र नहीं करते थे। उन्हें पंजाब से बड़ा लगाव था। पंजाब से आने वाले लोगों की उनके घर के नीचे कतार लगी रहती थी। उन्होंने अपने घर के नीचे उनके लिए कमरे भी बनवाए हुए थे। लोग वहां रहते-खाते पीते कई दिनों तक रुकते, फिर चले जाते थे। हर किसी की मदद की है धर्मेंद्र जी ने। मैं यही कहूंगा कि आज के एक्टर्स को सीखना चाहिए कि प्रोफेशनल होने के साथ-साथ इंसान भी कैसे होना चाहिए। प्यार तभी मिलेगा जब आप सभी से प्यार से बात करेंगे। धर्मेंद्र जी बड़े ही साधारण व्यक्ति थे। उन्होंने अपना फार्महाउस भी फगवाड़ा जैसा बना रखा था। अपने आखिरी दिनों में उन्होंने वहीं वक्त गुजारा। धर्मेंद्र पूरी तरह से फैमिली मैन थे धर्मेंद्र जी एक फैमिली मैन थे। एकदम पारिवारिक आदमी। भले ही हेमा मालिनी उनकी दूसरी पत्नी थीं, लेकिन उन्होंने अपने परिवार पर एक आंच नहीं आने दी। सबका बहुत आदर करते थे। हेमा के साथ भी मेरे बहुत अच्छे संबंध हैं। हम दोनों ने साथ में भजन भी रिकॉर्ड किए हैं। मैंने एक दिन उनसे कहा कि “आपने दुनिया के सबसे खूबसूरत आदमी से शादी की है।” वो मुस्कुराईं और बोलीं “हा”, लेकिन फिर कहने लगीं, “आपका मेरे बारे में क्या ख्याल है?” तब मैंने हंसते हुए कहा, “हा, उन्होंने भी दुनिया की सबसे खूबसूरत महिला से शादी की है।” गजलें सुनाता वो रोते रहे हम दोनों एक बार ट्रेन में सफर कर दिल्ली जा रहे थे। एसी कंपार्टमेंट था। मैं दूसरे पैसेंजर का इंतजार कर रहा था, पता चला कि वो दूसरे पैसेंजर धर्मेंद्र जी ही हैं। हमने साथ गाने गाए, किस्से-कहानियां हुईं। मैं उन्हें सफर में गजलें सुनाता तो वो रोने लगते थे। बड़े ही भावुक किस्म के शख्स और कला-प्रेमी थे। किसी से कोई झगड़ा नहीं करते थे। जीवन के अंत तक उन्होंने काम किया है। उनकी शबाना आजमी के साथ जो फिल्म ‘रॉकी रानी की प्रेम कहानी’ थी और उसमें जो गाना था “अभी न जाओ छोड़कर”, उसे उन्होंने सचमुच जिंदा कर दिया था। धरम जी ने ‘गरम धरम’ नाम के रेस्टोरेंट का आइडिया बताया बांसुरी वादक पद्मश्री पंडित रोनू मजूमदार धर्मेंद्र से जुड़ी यादें शेयर करते हुए कहते हैं- धर्मेंद्र और मेरा रिश्ता खास इसलिए था क्योंकि मैं पंजाबी काफी अच्छा बोलता हूं। धर्मेंद्र जैसे शेरदिल इंसान दूसरा कोई नहीं होगा। मुझे याद है कि सनी स्टूडियो में मेरे साथ बैठकर धर्मेंद्र जी ने ‘गरम धरम’ नाम के रेस्टोरेंट का आइडिया बताया और कहा, “तू खाएगा वहां खाना।” वहीं से यह रेस्टोरेंट शुरू हुआ, जो अब मुर्थल की शान बन गया है। धर्मेंद्र जी सोचते थे कि ढाबे के खाने जैसा कोई और अच्छा खाना नहीं होता। वह चाहते थे कि लोग गांव का अच्छा खाना ढाबे में खा सकें। उनके पास अपनी भी खेती थी जिससे अनाज मिलता था। उनकी एक खास फोटो ने वहां सबका ध्यान खींचा। खाना इतना बढ़िया था कि वह ढाबा सबसे अच्छा बन गया। वहां की दाल, साग, लस्सी जैसे खाने पंजाब के वेह नाश्ते थे जो धर्मेंद्र जी को अच्छे लगते थे। बांसुरी की आवाज सुनकर धरम जी रो पड़े धर्मेंद्र जी अपनी फिल्म ‘बेताब’ से अपने बेटे सनी को लॉन्च कर रहे थे। कहानी में ऐसा होता है कि विलेन सनी के कुत्ते को मार देते हैं और उस दर्द को दिखाने के लिए मैं बांसुरी बजाता हूं। उस वक्त मेरी बांसुरी सुनकर सनी तो नहीं, लेकिन धर्मेंद्र जी रो पड़े और कहा, “आज तेरी बांसुरी ने मुझे रुला दिया।” यह सुनकर मैंने तुरंत धर्मेंद्र जी से हाथ मिलाया और जब मैंने उनका हाथ पकड़ा तो लगा कि यह 10 किलो का हाथ है। बांसुरी सुन भावुक हुए धर्मेंद्र जी द्वारा दिया गया वह 500 रुपए का नोट आज भी मेरे पास है, जिसे मैंने काफी संभालकर रखा है। धर्मेंद्र जी खुशी से दारा सिंह को उठा लेते थे एक बात मैं बताना चाहूंगा कि पहलवान दारा सिंह धर्मेंद्र जी से बेहद प्यार करते थे और धर्मेंद्र जी भी उन्हें।उस दिन रेसलिंग हो रही होती है और रिंग में मैं धर्मेंद्र जी के साथ मैच देख रहा था। तभी दारा सिंह ‘गार्डन समारा’ नाम के पहलवान को हरा देते हैं। यह देख धर्मेंद्र जी खुशी से दारा सिंह को उठा लेते हैं। आप समझिए कि एक 130-135 किलो के आदमी को धर्मेंद्र जी आसानी से उठा लेते हैं। दारा सिंह से कुश्ती का दांव-पेंच सीखते थे धर्मेंद्र जी अक्सर दारा सिंह के यहां कुश्ती का दांव-पेंच सीखने जाते थे और यही दांव-पेंच आप उनकी फिल्मों में देख सकते हैं कैसे विलेन को मारने के बाद वह उसे कंधे से ऊपर उठाते, 7 चक्कर लगाते और फिर जमीन पर पटक देते थे। यही चीजें उन्होंने अपने दो बेटों को भी सिखाईं, लेकिन धर्मेंद्र जी की मुस्कुराहट किसी को नहीं मिल सकी। गिरते पेड़ को अपने कंधे से रोक लिया जिससे उनकी बाजुओं में काफी दम था। मुझे याद है कि फिल्म लोहा की शूटिंग के दौरान एक सीन में आंधी-तूफान कर पेड़ गिराए जाते हैं, तब धर्मेंद्र उन पेड़ों को असलियत में अपने कंधे से गिरने से रोक लेते हैं। दरअसल, फिल्म ‘लोहा’ में एक सीन था जिसमें आंधी-तूफान से पेड़ को गिरता हुआ दिखाना था। तब एक पेड़ को गिराने के लिए उसे काटा गया, लेकिन वह ज्यादा कट गया जिसकी वजह से पेड़ सीधे नीचे गिरने लगा। तब धर्मेंद्र जी दौड़कर गए और उस पेड़ को अपने कंधे पर ले लिया। उनकी इस बहादुरी से कई लोगों की जान बची। धरम जी के अंदर 600 पैक का दम था फिल्म बटवारा में धर्मेंद्र जी पागल ऊंट को रोकते हैं। ऊंट शूटिंग सेट पर इधर-उधर दौड़ रहा होता है तब धर्मेंद्र जी अपने दोनों हाथों से उसे रोकते हैं। धर्मेंद्र में 6-पैक ऐब्स नहीं बल्कि 600-पैक का दम था। ज्यादातर शूटिंग में उन्होंने किसी डुप्लीकेट की नहीं बल्कि ज्यादा एक्शन सीन खुद किए हैं। धरम जी के अंदर बच्चे जैसी क्यूरियोसिटी थी एड गुरु-फिल्ममेकर प्रभाकर शुक्ल कहते हैं- मेरी धरम जी के साथ बहुत अच्छी और रोचक यादें हैं। मैंने उनके साथ एक जॉइंट पेन ऑयल का विज्ञापन किया था। उस समय धरम जी 83 साल के थे। इस विज्ञापन के दौरान जब मैं उनके घर गया तो वे तुरंत मुझसे पूछते थे, “क्या लोगे?” वे बहुत मेहमाननवाज इंसान थे, बिना कहे किसी को भुखा अपने घर से नहीं जाने देते थे। उनमें बच्चे जैसी जिज्ञासा थी, जैसे एक कलाकार के अंदर बचपन का वह उत्सुक और मासूम भरा पक्ष होता है। वह जिज्ञासा और मासूमियत उनकी एक्टिंग में भी झलकती थी। आप उनकी कोई भी फिल्म देखें, उनकी एक्टिंग बड़ी सच्ची और दिल से होती थी। जब वे रोते थे तो ऐसा लगता था जैसे हम भी रो रहे हों, जब हँसते थे तो हमारी तरह हंसते थे, और जब लड़ते थे तो एकदम हम जैसे होते थे। उनकी हर भावना हर किसी को जुड़ने वाली लगती थी। अपने डायलॉग खुद उर्दू में लिखते थे जब शूटिंग हुई, हम मड आइलैंड पर थे। मैंने स्क्रिप्ट समझाई, उन्होंने उर्दू में डायलॉग लिखे और स्टाइल में बदलाव किए। शूटिंग सिर्फ 1-2 टेक्स में पूरी हुई क्योंकि उनका स्टाइल आत्मसात था। शूटिंग के बीच और बाद में उन्होंने लगभग 150 से ज्यादा लोगों के साथ फोटो खिंचवाई, चाहे वो स्पॉट बॉय हो या मेकअप वाला। लोग उनके सरल स्वभाव और कनेक्शन से बेहद खुश थे। उन्होंने हर किसी को अपनापन महसूस कराया, जैसे हम सब उनके अपने हैं। डबिंग में जल्दबाजी नहीं करते थे फिर मैं डबिंग के लिए गया उनकी सनी सुपर साउंड में। वहाँ हमने डबिंग शुरू की। उन्होंने कहा कि मैं बैठकर बोलूं, क्या यही ठीक रहेगा? मैंने कहा जी, आप किस भी तरह बोलिए जो आपको अच्छा लगे, क्योंकि आवाज आपकी ही चाहिए। फिर जब तक डबिंग परफेक्ट नहीं हुआ वे करते रहे। बाद में उनको एड दिखाया तो बोले कि बहुत अच्छा है। इससे पहले मैं हेमा जी के साथ भी एड कर चुका था। मैंने उन्हें हेमा जी की ऐड दिखाई, बोले बड़ी सोणी लग रही। मेरा भी एड उनको दिखाना। धरम जी कवि भी थे धरम जी से जब भी हमारी मुलाकात होती थी वह अपनी कुछ कविताएं और शायरी जरूर साझा करते थे, क्योंकि उनका दिल और कलाकारिता दोनों कवि जैसा था। मुझे लगता है कि उनकी कविताओं और शायरी का संग्रह किताब के रूप में बाहर आना चाहिए, ताकि लोग धरम जी के इस पक्ष को भी जान सके। उम्मीद करता हूं कि सनी और बॉबी इस पर जरूर कुछ विचार करेंगे। कैमरे को अपना दोस्त समझते थे 83 साल की उम्र में भी उनमें बहुत ताकत और जोश था। वह सेट पर हमेशा समय से पहले पहुंच जाते थे। कहते थे कि कैमरा मेरा दोस्त है, ऐसा बोलते थे। जब मैं कैमरे के सामने खड़ा होता हूं, तो मुझे लगता है, “अरे, मैं अपने दोस्त से मिलने आया हूं।” ये उनकी बहुत बड़ी यादें हैं मेरे साथ। और कुछ बातें याद आती हैं? धर्म जी की सबसे खास बात थी उनकी सरलता। उनकी सरलता लाजवाब थी। यह सरलता आपको शायद राज कपूर में मिलेगी। कुछ हद तक संजीव कुमार में भी नजर आ सकती है। लेकिन हीरो होते हुए भी वे बिल्कुल सरल और जमीन से जुड़े हुए रहते थे, हर आम आदमी से जुड़ जाते थे। कहते हैं कि ऐसा आदमी मिट्टी और जमीन से जुड़ा होता है। शूटिंग पूरी करने के लिए ट्रक ड्राइवर से मांग कर कपड़े पहने धरम जी के बारे में एक किस्सा बड़ा मशहूर है। जिसका जिक्र महेश भट्ट भी कर चुके हैं। 1972 में रिलीज फिल्म ‘दो चोर’ की शूटिंग धर्मेंद्र कर रहे थे। इस फिल्म के डायरेक्टर राज खोसला थे। उस फिल्म में महेश भट्ट असिस्टेंट डायरेक्टर थे। इस फिल्म में एक सीन में धर्मेंद्र ने असली ट्रक ड्राइवर के कपड़े पहने थे। फिल्म के निर्देशक ने उन्हें पुलिस से बचने के लिए एक ट्रक ड्राइवर और क्लीनर के रूप में छिपने के लिए यह रूप धारण करने को कहा था। महेश भट्ट ट्रक ड्राइवर कॉस्ट्यूम वाला लाना भूल गए। कॉस्ट्यूम होटल में छूट गई। महेश भट्ट को लगा कि अगर यह बात फिल्म के डायरेक्टर राज खोसला को चली तो उनकी नौकरी जा सकती थी। उन्होंने धर्मेंद्र को सारी बात बताई। धर्मेंद्र ने कहा कि तुम चिंता मत करो। धर्मेंद्र के पास में ही एक ट्रक ड्राइवर खड़ा था वह उनके पास गए और कहा कि यार तुम अपने कपड़े, लुंगी, कुर्ता, पगड़ी कुछ देर के लिए दे दो। धर्मेंद्र ने उस ट्रक ड्राइवर का कपड़ा पहना और उस सीन की शूटिंग हुई। _________________________________________________________ बॉलीवुड से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… उदित नारायण @70, कुमार सानू से कड़ा मुकाबला:म्यूजिक इंडस्ट्री में अकेले राज करने का था इरादा; किसिंग की वजह महिला फैंस की दीवानगी बताई उदित नारायण का किसान के बेटे से सुरों के बादशाह बनने तक का सफर प्रेरणादायक है। पिता चाहते थे कि वे डॉक्टर या इंजीनियर बनें, जबकि मां ने संगीत में करियर बनाने में उनको पूरा सपोर्ट किया। बिहार से काठमांडू और मुंबई तक की उनकी मेहनत और संघर्ष भरी राह ने उन्हें बॉलीवुड के सफल गायक के रूप में स्थापित किया।पूरी खबर पढ़ें….

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