राजस्थान हाईकोर्ट की जोधपुर पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि दशकों तक ली गई सेवा को ‘अस्थायी’ बताकर कर्मचारी को नियमितीकरण के हक से वंचित नहीं किया जा सकता। जस्टिस रेखा बोराणा की एकल पीठ ने भीलवाड़ा निवासी सत्यनारायण शर्मा व अन्य की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं को उनकी प्रारंभिक नियुक्ति से ही नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी माना जाए और उन्हें पेंशन व अन्य सेवानिवृत्ति लाभ दिए जाएं। मामले में याचिकाकर्ता ने करीब 40 साल तक विभाग में अपनी सेवाएं दी थीं, लेकिन सरकार ने उन्हें नियमित नहीं किया था। सरकार ने 1998 में दिया छंटनी नहीं करने का आदेश याचिकाकर्ता सत्यनारायण शर्मा को 5 अगस्त 1981 को पंचायत समिति लूणकरणसर में ‘गेट कीपर’ के पद पर अस्थायी आधार पर नियुक्त किया गया था। बाद में वर्ष 1992 में उन्हें ‘चुंगी नाका रक्षक’ के पद पर लगाया गया। जब राज्य में चुंगी समाप्त कर दी गई, तो वहां कार्यरत कर्मचारी सरप्लस हो गए। राज्य सरकार द्वारा 6 अगस्त 1998 को एक आदेश पारित किया गया, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ कहा गया कि ऑक्ट्रॉय के संग्रह और प्रबंधन के संबंध में काम कर रहे कर्मचारियों को सेवा से छंटनी नहीं की जाएगी। इसके बाद याचिकाकर्ता ने प्रारंभिक नियुक्ति की तारीख यानी 14 अगस्त 1981 से ग्राम पंचायत, लूंकरणसर में लगातार काम करते रहे। जिला परिषद, बीकानेर ने 23 नवंबर 2007 के पत्र के माध्यम से राजस्थान में ऑक्ट्रॉय की समाप्ति के कारण अधिशेष हुए कर्मचारियों को अन्य पदों पर समायोजित करने के लिए अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली विभिन्न ग्राम पंचायतों में काम कर रहे कर्मचारियों की सूची भेजी। ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज विभाग, राजस्थान सरकार ने 27 नवंबर 2016 के आदेश के माध्यम से ऑक्ट्रॉय की समाप्ति के बाद याचिकाकर्ता के समान कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले कर्मचारियों को कक्षा-4 के न्यूनतम वेतनमान की अनुमति दी। हालांकि, याचिकाकर्ता का नाम इस सूची में नहीं था। याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि सत्यनारायण ने लगभग 40 साल तक एक नियमित कर्मचारी की तरह सेवाएं दीं, लेकिन उन्हें नियमित नहीं किया गया। सरकार का तर्क: नियुक्ति नियमित तरीके से नहीं हुई सुनवाई के दौरान अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) और सरकारी वकीलों ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता की नियुक्ति चतुर्थ श्रेणी पद के लिए नियमित चयन प्रक्रिया के माध्यम से नहीं हुई थी। वकीलों ने कहा कि उन्हें अस्थायी आधार पर रखा गया था और चुंगी समाप्त होने के बाद मानवीय आधार पर सेवा में बनाए रखा गया, इसलिए सेवानिवृत्ति के बाद वे नियमितीकरण का दावा नहीं कर सकते। कोर्ट की सख्त टिप्पणी: 40 साल की सेवा अस्थायी नहीं हो सकती जस्टिस रेखा बोराणा ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि यह निर्विवाद है कि याचिकाकर्ता ने विभाग में लगातार 40 साल सेवा दी है । कोर्ट ने कन्हैयालाल नाई और लालाराम सैनी व अन्य पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि इतनी लंबी सेवा को अस्थायी नहीं कहा जा सकता। कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया, “इतनी लंबी सेवा को मूल सेवा माना जाना चाहिए। राज्य या उसके अधिकारियों की किसी भी कार्रवाई से किसी व्यक्ति को उस सेवा के मूल अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता जो उसने उन्हें प्रदान की है।” पेंशन मिलेगी, लेकिन एरियर नहीं हाईकोर्ट ने कन्हैयालाल नाई मामले के निर्णय को लागू करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को उनकी प्रारंभिक नियुक्ति तिथि से नियमित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी मानते हुए पेंशन और अन्य सेवानिवृत्ति लाभ जारी किए जाएं। हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि याचिकाकर्ता को वेतनमान में वेतन निर्धारण (Pay-fixation) के परिणामस्वरूप किसी भी एरियर (बकाया राशि) का दावा करने का हक नहीं होगा। तीन याचिकाओं में कुल 11 लोगों को राहत मुख्य याचिकाकर्ता सत्यनारायण शर्मा के अलावा, इस फैसले से दो अन्य जुड़ी हुई याचिकाओं में शामिल कुल 10 अन्य कर्मचारी भी लाभान्वित होंगे। इनमें पाली जिले (सोजत रोड क्षेत्र) के 7 कर्मचारी शामिल हैं- परमानंद शर्मा, सोहन सिंह चौहान, कल्याण सिंह, शांतिलाल सेन, महेंद्र कुमार, श्रीमती सुंदर और ढगलाराम प्रजापत। वहीं, भीलवाड़ा जिले (मांडल और कोटड़ी क्षेत्र) के 3 अन्य कर्मचारी- रमेश चंद्र भट्ट, छोटूसिंह राजपूत और ललितशंकर भट्ट भी इस आदेश के दायरे में आएंगे।


