झारखंड की महिलाएं खेती से जुड़कर अपना और राज्य का भविष्य संवार रही हैं। हर साल इनकी संख्या बढ़ रही है। इनकी संख्या पिछली साल से 7 प्रतिशत बढ़ी हैं। यह स्थिति लगभग सभी जिलों की है। कृषि विभाग के अनुसार अभी राज्य में महिला किसानों की संख्या 29 लाख 96 हजार 129 है। पिछले साल इनकी संख्या करीब 27 लाख के आसपास थी। इनमें अधिकतर महिलाएं सीधे तौर पर खेती से जुड़ी हैं। करीब तीन लाख ऐसी महिलाएं हैं, जो गौ-पालन, मुर्गी पालन और मछली पालन आदि कार्यों में सक्रिय हैं। कुछ जिलों में तो दूसरे काम के अभाव में महिलाएं खेती से जुड़ी हैं, पर अधिकतर जिलों में खेती की पूरा कमान इनके हाथों में है। यह महिला किसान तरबूज, आलू, बैंगन, फ्रेंचबीन, साग, मटर, भिंडी और मोटे अनाज आदि की खेती में राज्य को आत्मनिर्भर बना रही हैं। कृषि विभाग भी इन महिलाओं के सहयोग में आगे आया है। टपक विधि से सब्जी की खेती हो रही है, जिसमें राज्य सरकार करीब 75% अनुदान दे रही है। पहले गांव की जमीन यूं ही परती रहती थी, पर अब टपक विधि के आने और मिलने वाले अनुदान से उत्साहित होकर महिलाएं इस काम में सीधे जुड़ रही हैं। महिलाएं जल्दी मोटिवेट होती हैं, सरकार भी सपोर्ट कर रही: कृषि निदेशक ताराचंद ने दैनिक भास्कर से कहा कि महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा जल्दी मोटिवेट होती हैं। वे अपने लक्ष्य को जल्दी पूरा कर पाती हैं। झारखंड की महिला किसानों को राज्य और केंद्र सरकार लगातार सपोर्ट कर रही है। ये महिलाएं पहले खेती नहीं करती थीं, पर जब से सरकार का सपोर्ट बढ़ा है, वह आगे आई हैं। खेती के लिए सबसे जरूरी पानी की समस्या को दूर किया जा रहा है। सूक्ष्म सिंचाई योजना टपक विधि से व्यापक पैमाने में खेती होने लगी है। रांची के आसपास पिठोरिया, नगड़ी, ओरमांझी, खूंटी और रामगढ़ आदि क्षेत्रों के अलावा लगभग सभी जिलों में महिलाएं खेती को अपना रही हैं। खेती के साथ मार्केटिंग भी महिलाओं के हाथों में: खेत से बाजार तक का दायित्व महिलाओं ने अपने कंधे पर ले लिया है। खूंटी के मुरहू की रानी मुंडू, सिसीलिया तिरू, सिमडेगा के केरसई गांव की चिंतामणि महिलाओं के लिए उदाहरण है। कुछ वर्ष पहले तक इनका जीवन तंगहाली में बीत रहा था। पर, अब ये महिलाओं का आदर्श बन चुकी हैं। इन्होंने एफपीओ बनाकर हजारों महिलाओं को इससे जोड़ा है।