हाथियों से बार-बार उजड़ना और फिर खड़ा होना, यही संघर्ष की कहानी थी मैनपाट के कंडराजा गांव की। ग्रामीण हर साल घर बनाते थे और हाथी तोड़ देते थे। करीब दशक भर ऐसा ही चला। इस बीच, कई बार हाथियों के उत्पात से गांव जमींदोज हुआ, तीन ग्रामीण भी मारे गए, लेकिन ग्रामीणों की नई तरकीब से अब कंडराजा की पहचान बदल गई है। दरअसल, गांव वालों ने एलिफेंट प्रूफ नया गांव बसा दिया है, जिससे करीब 7 साल से गांव पूरी तरह से सुरक्षित खड़ा है। अब इस गांव में हाथियों के कारण किसी की जान नहीं जाती है। दरअसल, यह बदलाव गांव को हाथियों से सुरक्षा के हिसाब से बसाए जाने के बाद आया है। 500 की आबादी वाले पटेलपारा और बैगापारा कंडराजा के आश्रित गांव हैं। 56 परिवारों को बस्ती से बाहर एक ही जगह बसाया गया है। खास बात ये है कि इस पर अलग बजट का प्रबंध नहीं करना पड़ा। हाथियों से मकान के क्षति का जो मुआवजा बंटना था, उसी राशि से नया गांव बसाया गया है। गांव में पक्के के मकान और बच्चों के लिए आंगनबाड़ी केंद्र बनाए गए हैं। वहीं, सड़क, बिजली, पानी के साथ किचन गार्डन भी बनाया गया है। हाथियों का उत्पात रोकने फेंसिंग के जरिए गांव को सुरक्षित किया गया है। वहीं, जंगल के भीतर तालाब बनाया गया है, ताकि चारा पानी की तलाश में हाथी गांव में न आए। नया गांव बस्ती के बाहर ऊंचे स्थान पर बसाया गया है, जिससे हाथी दूर से ही दिख जाते हैं। नई पहल से कंडराज अब हाथियों के खौफ से मुक्त हो रहा है। इससे मकान क्षति का हर साल मुआवजा भी नहीं बांटना पड़ रहा है। इस प्रयास को वन्यजीव विशेषज्ञ एजेटी जॉनसिंह ने सराहना करते हुए अन्य राज्यों के लिए अनुकरणीय बताया था। वे प्रोजेक्ट एलिफेंट की सेंट्रल टीम के साथ कंडराजा में हाथी मानव प्रबंधन के कार्यों को देखने आए थे। कंडराजा हाथियों के कॉरिडोर में बसा गांव है। बदलाव जरूरी… क्योंकि 120 हाथी और यहीं अधिक उत्पात छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक 120 हाथी अलग अलग दल में सरगुजा रेंज में भटक रहे हैं। सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर और कोरिया जिले में 500 से अधिक गांव हाथियों से प्रभावित हैं। ये गांव जंगल से लगे हैं या फिर हाथियों के कॉरिडोर में बसे हैं जहां से हाथी एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में मूवमेंट करते हैं। बसाहट दूर दूर होने और कच्चे के मकान होने के कारण हाथी मकानों को तोड़ते हैं। कंडराजा जैसी पहल की जाए तो प्रभावित गांवों में इस चुनौती से निपटा जा सकता है। वहीं सरकार को मुआवजे के हर साल करोड़ों रुपए बचेंगे। इसे इसी से समझ सकते हैं कि सरगुजा रेंज में हाथियों से नुकसान पर ढाई साल में 25 करोड़ रुपए मुआवजे बांटने पड़े हैं। ऐसा प्रयोग कहीं और नहीं दिखा
हाथी विशेषज्ञ प्रभात दुबे के अनुसार हाथियों के आने पर रात-रात भर निगरानी करनी पड़ती थी। कंडराजा हाथियों के कॉरिडोर में बसा गांव है। कुछ साल पूर्व हाथियों कापू से यहां आने के बाद पूरे घरों को गिरा दिया था। तत्कालीन कलेक्टर किरण कौशल ने हालात देखने के बाद कहा था कि यहां हाथी हर साल आएंगे, घर तोड़ने और मुआवजा बांटते रहेंगे। हमें स्थाई समाधान पर काम करना होगा। हाथियों की समस्या और लोगों की जरूरत के हिसाब से कंडराजा को नए सिरे से बसाना, उनकी इसी सोच परिणाम है। गांव में ही हाथी संकट प्रबंधन केंद्र- कंडराजा के हाथी प्रभावित परिवारों को जहां बसाया गया है, वहां बस्ती में आंगनबाड़ी केंद्र के ऊपर हाथी संकट प्रबंधन केंद्र बनाया गया है। यहां हाई बीम लाइट व हैलोजन लगाए गए हैं। विभिन्न प्रकार के वाद्य यंत्र दिए गए हैं। हाथी आने पर अलर्ट कर दिया जाता है और ग्रामीण हाथी संकट प्रबंध केंद्र में पहुंच जाते हैं। यहां डर कम करने गीत-संगीत चलता है। केंद्र में अनाज बैंक भी बना हुआ है।