भास्कर इंटरव्यू अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में भाग लेने के लिए मंगेशकर बहनों में सबसे छोटी उषा मंगेशकर रांची आई हैं। शनिवार को उन्होंने भास्कर से बातचीत में लता दीदी से उनका जुड़ाव, पहले और वर्तमान गानों में अंतर व सर्वकालिक हिट गाना मुंगड़ा जैसे गीत के बारे में चर्चा की। कहा कि दीदी झारखंड आना चाहती थीं, अब वह नहीं आ पाईं तो मैं आ गई। उन्होंने झारखंड के संगीत को असम व नेपाल के फोक म्यूजिक से प्रभावित बताया। साथ ही उन्होंने बताया कि उनकी फिल्म ‘जय संतोषी मां’ को एचएमवी ने रिलीज किया था, उस समय इस फिल्म ने बिक्री में सारे पुराने रिकॉर्ड तोड़ दिए थे। यह ऐसा बिजनेस करेगी, किसी को विश्वास नहीं हुआ।
मंगेशकर बहनों में सबसे छोटी उषा फिल्म फेस्ट में भाग लेने रांची आई हैं, उनसे खास बातचीत आपने शुरू से क्षेत्रीय फिल्मों को बढ़ावा दिया, नागपुरी में गाना चाहेंगी? मैं लगभग देश के हर राज्य जा चुकी हूं, बस झारखंड ही नहीं आ पाई थी। आशा ताई के बाद में दूसरी हूं जो रांची आई। रास्ते में मैंने गायिका मृणालिनी अखौरी से यहां के गीत सुने तो मुझे असम और नेपाली के फोक गीत से प्रभावित लगे। यहां के गीतों की खासियत है कि बहुत मुरकी लिए होते हैं, ऐसी ही मुरकी भूपेन हजारिका जी भी मुझसे गवाते थे। अच्छे गीत मिले तो नागपुरी में गाऊंगी। झारखंड में जहां भी मूर्ति विसर्जन होता है, एक गाना जो सबसे ज्यादा बजता है वह है ‘मूंगड़ा…’, इस गीत के बारे में कुछ बताएं? मुंगड़ा मराठी शब्द है जिसका मतलब है काला बड़ा चींटा। उसके बोल किसी को समझ में नहीं आते, लेकिन म्यूजिक इतना अच्छा है कि सभी इसे पसंद करते हैं। बहुत मजा आया था, इसे गाकर। आज भी यह वैसे ही पॉपुलर है। म्यूजिक इंडस्ट्री आज तेजी से बदल रही है, आज के गीत की लाइफ इतनी छोटी क्यों है? आज के गानों ने भारतीय संगीत को थोड़ा पीछे कर दिया है। अजीब ही गाने बन रहे हैं। न तो बोल हैं न ही संगीत। पहले जो गाने लता दीदी, आशा ताई, किशोर दा गा चुके हैं, उसके पीछे मेहनत बहुत थी। शुरू-शुरू जब हमलोग गाते थे, तो 15-15 बार रिहर्सल करते थे, एक-एक करेक्ट शब्द बिठाए जाते थे, फिर ट्यून सुनाई जाती थी। फिर आर्टिस्ट को गाने कहा जाता था। दीदी तो एक बार में ही याद कर लेती थी, फिर उन्हें जो बोल अच्छा लगता, उस बोल को ऐसे गातीं कि हिस्ट्री बन जाती। आज दीदी जैसा गाने वाला कोई नहीं। आज मुखड़ा गा दो, फिर अंतरा गा दो। फिर टुकड़े जोड़ देते हैं। डुएट गाने भी अलग बनते हैं। ‘अपलम चपलम’ जैसे कालजयी गीत सहित कई आपने लता दीदी के साथ गाए हैं, गाते समय दीदी क्या सुझाव देती थीं? ‘अपलम चपलम’ दीदी के साथ मेरा पहला गाना था। म्यूजिक डायरेक्टर सी रामचंद्र थे। दीदी के साथ गाना था तो मुझे कोई चिंता ही नहीं थी, अगर मैं नहीं गाती तो दीदी गा लेती। गाने को लेकर दीदी का यह सुझाव होता था कि जैसा गाती हो उसी तरह से गाओ। गाने की जो लाइंस मेरी समझ में नहीं आती थी उसे दीदी गा देती थीं। कभी मैं बोलती थी सिर्फ एक ही लाइन गाऊंगी तो दीदी कहती थीं, ‘ठीक है एक ही लाइन गा दे, बाकी मैं गा दूंगी।’ नए गायक सफल होने के लिए क्या करें? जो लोग रियाज करके आए हैं, उनके लिए ज्यादा मुश्किल नहीं है। आज श्रेया घोषाल अच्छा गा रही हैं, लेकिन उन्हें भी उनके रेंज के गाने नहीं मिलते। अलग-अलग स्टाइल के गाने गाकर ही आवाज अच्छी होती है। पहले मदन मोहन अलग स्टाइल का म्यूजिक बनाते थे। आरडी बर्मन का अपना स्टाइल था। आज जो युवा म्यूजिक में करियर बनाना चाहते हैं वे मेहनत करे। अपने क्षेत्र के गीत को अपना स्टाइल बनाएं, तभी चल पाएंगे।