बिलासपुर नगर निगम को हाईकोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए कमर्शियल कोर्ट के आदेश को निरस्त कर दिया है। कमर्शियल कोर्ट ने नगर निगम को कंसलटेंट कंपनी को 4.07 करोड़ रुपए का भुगतान करने का आदेश दिया था। पूरा मामला स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम के भुगतान को लेकर है। दरअसल, नगर निगम ने 15 जुलाई 2010 को स्टार्म वाटर ड्रेनेज सिस्टम के लिए योजना और डिजाइनिंग का काम करने कंसल्टेंट की नियुक्ति करने टेंडर जारी किया। प्रक्रिया पूरी करने के बाद सिंगापुर की मैनहार्ट कंपनी को काम मिला। एग्रीमेंट के अनुसार प्रोजेक्ट की कुल लागत का 1.18 फीसदी राशि कंसल्टेंट को मिलनी थी। इसके लिए 24 जनवरी 2011 को एग्रीमेंट हुआ। कंपनी को 33.53 करोड़ रुपए का डीपीआर बनाकर देना था। लेकिन, कंपनी ने सर्वे कर 333.93 करोड़ रुपए का डीपीआर बना दिया। मैनहार्ट कंपनी ने इस लागत पर 1.18 फीसदी के आधार पर 4. 7 करोड़ रुपए की मांग की। निगम ने पैसे देने से किया इंकार तो कमर्शियल कोर्ट पहुंचा मामला
नगर निगम ने कंपनी को इतनी राशि देने से इनकार कर दिया। इस पर कंपनी ने मध्यस्थता के लिए मामला प्रस्तुत किया। मध्यस्थ ने 7 फरवरी 2018 को कंसल्टेंट के पक्ष में फैसला दिया। साथ ही नगर निगम को 4.07 करोड़ रुपए कंपनी को भुगतान करने का आदेश दिया। आदेश के अनुसार तीन माह के भीतर रकम नहीं देने पर 9 फीसदी वार्षिक ब्याज के साथ राशि दी जानी थी। निगम ने मध्यस्थ के आदेश को कमर्शियल कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन, कमर्शियल कोर्ट से निगम की अपील खारिज हो गई। हाईकोर्ट ने निगम के पक्ष में दिया फैसला
जिसके बाद नगर निगम ने कमर्शियल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की। हाईकोर्ट ने नगर निगम के पक्ष में फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि प्रोजेक्ट की अंतिम लागत को सरकार की मंजूरी नहीं मिली थी। इसलिए, कंसल्टेंट की फीस का दावा गलत था। हाईकोर्ट ने मध्यस्थ और कंसल्टेंट के आदेश को निरस्त कर दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद नगर निगम को अब यह राशि नहीं देनी होगी। 44.26 लाख की जगह मांगे 4.7 करोड़ रुपए
कंपनी को डीपीआर बनाने के लिए 44.26 लाख मिलना था। लेकिन, कंपनी ने 333.93 करोड़ के प्रोजेक्ट के हिसाब से 4 करोड़ 7 लाख रुपए की मांग की। इस दौरान निगम द्वारा भुगतान नहीं किए जाने पर मामला कोर्ट में चला गया।