भास्कर न्यूज | बलांगीर संसद के चल रहे शीतकालीन सत्र के दौरान, सांसद (राज्यसभा) निरंजन बिशी ने वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने के संबंध में जनजातीय कार्य मंत्रालय से अतारांकित प्रश्न पूछा। उन्होंने इस बारे में जानकारी मांगी कि क्या ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों ने वन भूमि पर अतिक्रमण करके घर बना लिए हैं, वे 50 वर्षों से वहां रह रहे हैं, और क्या उन्हें हटाने की प्रक्रिया चल रही है, जिसमें नोटिस भी दिए जा रहे हैं। उन्होंने ओडिशा सहित राज्यवार ऐसे अतिक्रमणों और बेदखली के बारे में जानकारी मांगी। साथ ही वन ग्रामों को राजस्व ग्रामों में परिवर्तित करने के लिए राज्यों से प्राप्त प्रस्तावों के बारे में भी जानकारी मांगी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने इस संबंध में सरकार के उठाए जा रहे कदमों के बारे में भी जानकारी मांगी। जवाब में, जनजातीय कार्य मंत्री दुर्गा दास उइके ने बताया कि, जैसा कि पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने बताया गया है, भूमि राज्य सरकारों का विषय है। वन क्षेत्र और उनकी कानूनी सीमाओं का निर्धारण व रखरखाव संबंधित राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है। मंत्री ने यह भी कहा कि एफआरए की धारा 3(1) (एच) वन गांवों, पुरानी बस्तियों, सर्वेक्षण न किए गए गांवों और जंगलों में अन्य गांवों को राजस्व गांवों में बसाने और बदलने की गारंटी देती है। जबकि राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए जिम्मेदार हैं, जनजातीय मामलों के मंत्रालय को वन गांवों को राजस्व गांवों में बदलने के लिए राज्य सरकारों से कोई प्रस्ताव नहीं मिला है। हालांकि, राज्य सरकारों को नियमित रूप से नियमों और दिशानिर्देशों के अनुसार रूपांतरण की प्रक्रिया की जांच करने और शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।