MP में 50 दिन में पराली जलाने के 34000 केस:सैटेलाइट के जरिए होती है निगरानी, CBG प्लांट दिलाएंगे किसानों को आर्थिक फायदा

मप्र की मोहन सरकार ने गुरुवार को पराली जलाने वाले किसानों पर कड़ा एक्शन लेने का ऐलान कर दिया है। पराली जलाने वाले किसानों को अब मुख्यमंत्री किसान सम्मान निधि का लाभ नहीं दिया जाएगा। सरकार अब पराली जलाने वाले किसानों की फसल न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर नहीं खरीदेगी। सरकार के इस फैसले के बाद दैनिक भास्कर की पड़ताल में मप्र में पराली जलाने की सबसे ज्यादा घटनाओं वाले जिले, पराली जलाने की घटनाओं को चिह्नित करने के लिए सरकार किस सिस्टम से मॉनिटरिंग कर रही है और पराली के प्रबंधन को लेकर क्या प्रयास किए जा रहे हैं के बारे में जानकारी सामने आई है। केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज का इलाका पराली जलाने में दूसरे नंबर पर
मप्र में 5 मार्च से बीते 24 अप्रैल तक 50 दिनों में पराली जलाने के कुल 34164 केस दर्ज हुए हैं। मप्र में सबसे ज्यादा नर्मदापुरम जिले के किसान पराली जलाने में आगे हैं। 50 दिनों में नर्मदापुरम जिले में 5784 घटनाएं दर्ज हुई हैं। केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के संसदीय क्षेत्र में आने वाला विदिशा जिला इस मामले में दूसरे नंबर पर है। यहां पराली जलाने के 3907 केस दर्ज हुए हैं। 2646 केस के साथ सीहोर जिला तीसरे और 2229 केस के साथ रायसेन जिला तीसरे नंबर पर है। सबसे पहले जानिए कैसे पकड़ में आती है पराली जलाने की घटनाएं…
आईसीएआर यानि इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट सैटेलाइट के जरिए पराली बर्निंग केस दर्ज करता है। जिस मैदानी इलाके में आग लगने की घटना नजर आती है। सैटेलाइट उस इमेज को कैप्चर कर गांव, तहसील और जिले के साथ लैटीट्यूड और लांजिटयूड के साथ रिकॉर्ड जनरेट कर संबंधित राज्य के एग्रीकल्चर इंजीनियरिंग डायरेक्टोरेट को भेजता है। मप्र कृषि अभियांत्रिकी संचालनालय आईसीएआर–क्रीम्स से मिले सैटेलाइट डेटा को जिले वार अलग-अलग करने के साथ संबंधित जिले के कलेक्टर और कृषि विभाग के डीडीओ को पराली जलाने के मामलों की गांव वार डिटेल शीट भेजता है। जिला प्रशासन राजस्व अमले के जरिए गांव में जाकर ये सत्यापन करता है कि किस किसान ने पराली जलाई है। सत्यापन के बाद किसान के खिलाफ जरूरी कार्रवाई की जाती है। किसानों पर एफआईआर तक दर्ज कराई जाती हैं। मप्र कृषि अभियांत्रिकी संचालक पवन सिंह श्याम ने पराली की निगरानी और प्रबंधन को लेकर भास्कर से बातचीत की सवाल- पराली जलाने की निगरानी कैसे होती है?
पवन सिंह- भारत सरकार की संस्था क्रीम्स से हमें पराली जलाने की घटना की जानकारी मिलती है। घटना के दूसरे दिन ये जानकारी हमें मिलती है। हम वो जानकारी कमिश्नर, जिला प्रशासन, संयुक्त संचालक कृषि, डिप्टी डायरेक्टर एग्रीकल्चर और सहायक यंत्री को भेजते हैं। उस जानकारी में जिस गांव में घटना हुई है, उस गांव का नाम, तहसील और जिला लिखा होता है। उसके आधार पर परीक्षण कराया जाता है। जिन किसानों के खेतों में पराली जली है। उनके ऊपर जिला प्रशासन कलेक्टर के माध्यम से एफआईआर दर्ज करने की कार्रवाई हो रही है। एफआईआर दर्ज होने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों के मुताबिक दंड आरोपित कर राशि जमा कराई जाती है। सवाल: पराली प्रबंधन के लिए कृषि अभियांत्रिकी विभाग और प्रशासन क्या कर रहे हैं?
पवन सिंह- पराली जलाने की घटनाएं पिछले सालों से मप्र में बढ़ी हैं। लेकिन, किसान पराली जलाने के बजाय उसका प्रबंधन करें इसके लिए बहुत सारे यंत्र आ चुके हैं। हमारे कृषि विभाग के अधिकारी इसका प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। जैसे हैप्पी सीड़र, सुपर सीड़र के अलावा गर्मी के समय में खेत खाली होने पर किसान गहरी जुताई कर सकते हैं। इससे नीचे की मिट्‌टी ऊपर आ जाती है और पराली मिट्‌टी में दबकर जैविक खाद में तब्दील हो जाती है। इससे मिट्‌टी में पानी अवशोषित करने की क्षमता भी बढ़ जाती है। हार्वेस्टर चलने के बाद खेत में जो डंठल बचे हैं। उस पर पशुओं के चारे के लिए स्ट्रा रिपर चला सकते हैं। इस तरह पराली जलाने की घटनाओं को कम किया जा सकता है। इसकी जानकारी किसानों को दे रहे हैं। सवाल: क्या कंप्रेस्ड बायो गैस प्लांट में भी पराली का उपयोग हो रहा है? पवन सिंह- मप्र में रिलायंस ग्रुप दस प्लांट लगाने जा रहा है। उसमें से 6 जगह पर प्लांट लगाने की कार्रवाई शुरू हो गई है। इन प्लांट्स में धान की पराली का उपयोग करेंगे। उससे बनी गैस से किसानों को कुछ आमदनी भी होगी। इस तरह पराली इकट्‌ठा करने के लिए एग्रीगेटर के काम को बढ़ावा दे रहे हैं। पिछले साल हमारे पास 14 आवेदन आए थे। उसमें से दो हितग्राहियों ने केन्द्र स्थापित कर काम शुरू कर दिया है। इस तरह पराली प्रबंधन के लिए निजी कंपनियां आगे आ रही हैं। मप्र में रिलायंस ग्रुप सतना, जबलपुर, भोपाल, आष्टा और इंदौर में प्लांट लगा रहा है। खरीफ फसल के समय ये प्लांट शुरू भी हो जाएंगे। यहां पर पराली का बंडल बनाकर वहां ट्रांसपोर्ट कर ले जाएंगे। प्लांट्स में गैस बनेगी और किसानों की आमदनी बढ़ेगी। पराली जलाने की घटनाओं में भी कमी आएगी।

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