भारत की आजादी के बाद रियासतों का विलीनीकरण हुआ। इस विलीनीकरण की प्रक्रिया में तत्कालीन मध्यप्रदेश में मुख्य रूप से बस्तर और कांकेर रियासतों और उनके साथ कुछ जमींदारियों को मिलाकर 1948 में बस्तर जिला अस्तित्व में आया था। बस्तर जिले को रायपुर संभाग के अंतर्गत रखा गया। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यह बस्तर जिला भौगोलिक क्षेत्रफल की दृष्टि से केरल जैसे राज्य से भी बड़ा था। उस समय बस्तर जिले के मुख्यालय जगदलपुर में बैठकर एक कलेक्टर एक प्रदेश से बड़े क्षेत्रफल का प्रशासन संभालता था। सन् 1948 और उसके बाद के कुछ दशकों तक तो बस्तर को ‘‘अण्डमान निकोबार‘‘ जैसा दूरस्थ स्थान और पनिशमेंट पोस्टिंग वाली जगह माना जाता रहा था। अब बस्तर सात जिलों वाला एक अलग संभाग बन गया है। अब बस्तर संभाग के जिलों में कलेक्टर के रूप में पदस्थ होना अधिकारी के लिए चुनौती और कुछ नया करने का अवसर माना जाता है। बस्तर के कलेक्टर रहते विवाद के केंद्र में भी रहे जब डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा बस्तर में कलेक्टर थे तब वे एक विवाद के केन्द्र में भी आ गए थे। उनके कलेक्टर कार्यकाल के दौरान बस्तर में बैलाडीला परियोजना में बाहर से अनेक लोग नौकरी करने आ गये थे। इन बाबू साहबों ने आदिवासी युवतियों को नौकरानी के रूप में घरेलू काम के लिए लगा लिया। कुछ उनका शारीरिक शोषण भी करने लगे। कलेक्टर शर्मा ने आदिवासी महापंचायत बुलाकर यह आदेश पारित कराया कि कोई भी बाहरी व्यक्ति आदिवासी युवती को अपने घर में काम पर नहीं रख सकता। जिन कुंवारे बाबू साहबों ने आदिवासी युवतियों का शोषण किया था उन्हें आदिवासी युवतियों से शादी करने के लिए कहा गया। इस तरह कलेक्टर के हस्तक्षेप और आदेश के पश्चात् किरंदुल गांव में सामूहिक तौर पर गैर आदिवासी युवकों के साथ 16 आदिवासी युवतियों का विवाह 29 मई 1971 को संपन्न हुआ। कुछ शादियां टूटी भी, पर शोषण कम हुआ कलेक्टर डॉ. शर्मा के द्वारा इस तरह कराई गई कोई 170 शादियों में से कुछ शादियां कलेक्टर के स्थानान्तरण के बाद टूट गई। लेकिन यह जरूर हुआ कि उस क्षेत्र में शारीरिक शोषण की घटनाओं में कमी आई। बहरहाल, कलेक्टर डॉ. शर्मा का नाम विवाद के लिए लिया जाता रहा। ब्रह्मदेव शर्मा ने किए थे नवाचार आज का बस्तर संभाग जब अकेला एक जिला था तब वहां कुछ अत्यंत उल्लेखनीय अधिकारी कलेक्टर के रूप में पदस्थ रहे थे। इतने विशाल और दुर्गम क्षेत्र में इन अधिकारियों ने अपने-अपने ढंग से जिले में विकास और कल्याण के कार्य शुरू किए थे। इस क्रम में 70 के दशक में बस्तर में पदस्थ कलेक्टर, आई.ए.एस. अधिकारी डॉ. ब्रह्मदेव शर्मा को याद किया जाता है। उन्होंने यहां विकास और कल्याण के लिए कुछ नवाचार किये थे। डॉ. शर्मा को बाद में भारत सरकार ने उत्तर-पूर्व भारत में एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किया और फिर उन्हें भारत का आदिवासी कल्याण आयुक्त नियुक्त किया।