आदर्श ग्राम का हाल-1:सांसदों की गोद में, फिर भी अनाथ; नाली-पानी-सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पाए सांसद

सांसद आदर्श ग्राम योजना से गांवों की सूरत बदलने का दावा है। छत्तीसगढ़ में इस दावे की हकीकत सामने लाने के लिए भास्कर टीम ने एक महीने तक 11 सांसदों के गोद ग्रामों की जमीनी पड़ताल की। पहली कड़ी में आज पढ़िए- नाली-पानी-सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं दे पाए सांसद…. गांवों की सूरत बदलने के लिए केंद्र सरकार ने सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की थी। इसके तहत प्रत्येक सांसद को कम से कम एक गांव गोद लेकर संवारने का काम करना श्रा, ताकि कह क्षेत्र में मॉडल बने। लेकिन इस योजना का छत्तीसगढ़ में बुरा हाल है। सांसदों के गोद लिए गांव आज भी नाली-पानी और सड़क जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। कहीं सड़क बनी। बनी है, तो नाली नहीं है। कहीं जल जीवन मिशन के तहत घरों में नल तो दो साल पहले लग गए, लेकिन टंकी न बन पान से पानी नहीं आ रहा। कई गांवों में आंगनबाड़ी भवन जर्जर हैं, इसलिए, किराए के भवन में चल रहे हैं। पिछले पांच साल में लोकसभा और राज्यसभा सांसदों ने 72 गांवों को गोद लिया। खानापूर्ति के लिए संसदों ने गांवों को गीद तो ले लिया पर पांच साल में दो-तीन मुश्किल से गए। इन गोद लिए गांवों की हालत बेसहारा छोड़ दिए या अनाथों जैसी है। सामाजिक, आर्थिक और जागरुकता के स्तर पर भी वे गांव पिछड़े हुए हैं। पांच साल में प्रदेश के सभी 11 लोकसभा सांसदों द्वारा गोद लिए गांवों में क्या काम हुए। उनकी तस्वीर कितनी बदली, इसे जानने के लिए भास्कर रिपोर्टर ने एक महीने तक तक इन सांसदों के गोद ग्रामों का दौरा किया। वहाँ नमीन पर लोगों से बातचीत में चौंकाने वाले खुलासे हुए। इस ग्राउंड रिपोर्ट की पहली कड़ी में आज पड़िए तत्कालीन तीन सांसदों संतोष पाण्डेय, विजय बघेल और ज्योत्सना महंत के गांवों का हाल… संतोष पाण्डेय ग्राम मातेचेड़ा – इलाज को जाना पड़ता है 5 किमी पैदल मातखेड़ा गांव की स्थिति दूसरे अन्य गांवों से थोड़ी बेहतर है, पर स्वास्थ्य केंद्र न होने से लोगों में नाराजगी है। दरअसल, सांसद संतोष पाण्डेय के गोद ग्राम की एक-दो को छोड़‌कर सभी गलियों में पक्की सड़‌कें हैं। लेकिन स्वास्थ्य केंद्र और परिवकान सुविधा नाहीं है। ऐसे में इलाज के लिए लोगों को 4-5 किलोमीटर दूर बुच्चाटोला या गंदा टोला जाना पड़ता है। मालती यादव का कहना है कि पहले बसें चलती थीं, लेकिन कोरोना के समय से बसें नहीं चल रही हैं। बस के लिए भी 5 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। पिछले साल पानी टंकी बनना शुरू हुई, पर अब तक पूरी नहीं हो सकी। ठेकेदार काम छोड़कर भाग गया है। फिलहाल, पुरानी टंकी से काम चल रहा है। सरपंच पत्नी लक्ष्मी श्रीचाय ने बताया कि टंकी का अभी कुछ काम बाकी है। 49 कामों का प्लान था, 21 अब तक अपूरे- विलेज डेवलपमेंट प्लान (बीडीपी) में 40 40 काम प्राथमिकता में थे। 21 अब तक पूरे नहीं हुए। इन्हें 2022 तक पूरा कर लेना था। अधूरे कामों में प्राइमरी स्कूल में शौचालय, मिटिल में शौचालय मम्मत, प्रक्षमरी स्कूल मरम्मत, सिलाई मशीन प्रशिक्षण आदि हैं हमने बहुत से काम कराए थे। आगे और भी काम कराऊंगा। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, इसलिए बहुत सहयोग नहीं मिला। सरपंच ने भी असाहयोग किया। इसकी वजह से अपेक्षित विकास नाहीं हुआ। संतोष पाण्डेय, तत्कालीन सांसद राजनांदचन विजय बघेल ग्राम सेलुद – 60% घरों में नहीं पहुंच रहा नल से पानी चार हजार की आबादी वाले सेलूद गांव को 2020 में दुर्ग सांसद विजय बघेल ने गोद लिया था। मुख्य मार्ग पर होने से शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर हैं। 12वीं तक पढ़ाई के लिए अंग्रेजी और हिंदी मीडियम स्कूल भी है। आंगनबाड़ी जैसी दूसरी अन्य सुविधाएं तो हैं लेकिन 60% से ज्यादा घरों में आज भी नल जल कनेक्शन से पानी नहीं मिल रहा है। गांव के 20-25 परिवार तो ऐसे हैं जो कुएं से पानी की जरूरत पूरी कर रहे हैं। पंच धनंजय साहू कर कहना है कि बान संग्रहण केंद्र के पास की गांव की पास जमीन पर कब्जा हो रहा है। कलेक्टर से इसकी शिकायत भी की गई है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। जबकि ओंकार मणिपुरी ने बताया कि गांव में केवल एक पोडीएस दुकान है इसलिए लोगों को राशन लेने में काफी परेशानी होती है। 33 काम तब ये, पानी अब तक नहीं पहुंचा बीडीपी में 33 काम तब थे। 30 पूरे करने का दावा है। इसमें पक्की नाली, डिस्पोजल कप यूनिट लगाने, प्राइमरी स्कूल में रनिंग वॉटर की व्यवस्था करने का दावा है। हकीकत यह है कि गांव के कुछ मुहल्लों के घरों में आज भी नाल से पानी नहीं पहुंच रहा है। पिछली सरकार में जल जीवन में भ्रष्टाचार के कारण पानी घरों तक नहीं पहुंच रहा है। घास जमीन पर कब्बे की शिकायत पर कार्रवाई हुई थी। आगे भी जैसे जैसे शिकायत आएगी संज्ञान में लेकर कार्रवाई होगी। विजय बघेल, संसद दुर्ग ज्योत्सना महंत ग्राम धुरेना – सांसद ने गोद लिया है, लोगों को पता ही नहीं गांव में प्रवेश करते ही सरपंच का मकान है। आगे बढ़ने पर कुछ सड़के कानी दिखी। वहां अंजोर दास ने बताया कि सांसद को हमने कभी नहीं देखा है। सरपंच यह सड़क बनवा रहे हैं। नल-जल बोजना की टंकी 2024 में बनी, पछ्पलाइन भी बिछ गया है पर घरों में पानी नहीं आता है। सांसद ज्योत्सना महंत ने इस गांव का गाद ले रखा है लेकिन गांव वालों को पता नहीं है। कोटवार बंशीलाल सारथी का कहना है कि एसईसीएल ने सालों पहले इसे गोद लिया था। पंचाका के सामने सड़क, बिजली, पानी और स्कूल खोलने की घोषणा हुई थी, पर कुछ नहीं हुआ। आंगनबाड़ी भवन जर्जर है। 97 कामों का प्लान, 18 शुरू ही नहीं कौडीपों में 97 कामों की सूची बनी। इसमें वॉटर सप्लाई, बोर खनन, पोषण बाड़ी को स्थापना के साथ ही चुनिंदा तीन दर्जन से अधिक लोगों के भूमि समतलीकरण और बोर खनन का काम शामिल है। इसमें भी आंगनबाड़ी भवन निर्माण शुरू नहीं होने की बात आई है। जी फंट मिलता है वो गांव के विकास के लिए पर्याप्त नहीं है। इस सरकार ने तो डीएमएफ फंट को बर्नेक कर रखा है। आंगनबाड़ी जर्जर है बन्ने कहां जाएंगे। SECL को सीएसआर गद से विकास करना है, पर वे ध्यान नहीं देते। ज्योत्सना महंत, संसद कोरला

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