दो साल हिरासत में रहा नाबालिग, हाईकोर्ट ने दी जमानत:निचली कोर्ट का आदेश बदला; कहा- झुग्गियों में रहने वालों को अपराधी मानना अमानवीय

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने 2 साल से बाल सुधार गृह में बंद एक नाबालिग को जमानत दे दी। इतना ही नहीं, कोर्ट ने निचली अदालत के उस आदेश को भी काटा, जिसमें कहा गया था कि जमानत इसलिए नहीं दी गई क्योंकि बच्चा अनाथ और झुग्गी बस्ती में रहता है। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि झुग्गी या स्लम इलाकों में रहने वाले लोगों को सिर्फ उनके रहन-सहन के आधार पर अपराधी प्रवृत्ति का मान लेना न सिर्फ गलत है। यह सोच अमानवीय और संविधान के खिलाफ है। कोर्ट ने यह टिप्पणी एक नाबालिग आरोपी को जमानत देते हुए की, जिसे एनडीपीएस (NDPS) एक्ट के तहत 39.7 किलोग्राम गांजा रखने के मामले में पकड़ा गया था। नाबालिग करीब 2 साल से बाल सुधार गृह में बंद था, जबकि इस मामले में अधिकतम सज़ा ही 3 साल है। निचली अदालत ने जमानत देने से किया था मना बच्चे की जमानत निचली अदालत में भी लगाई गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। निचली अदालत ने इस आधार पर जमानत देने से इनकार कर दिया था कि आरोपी बच्चा अनाथ है और स्लम बस्ती में रहता है, इसलिए उसे अपराधियों के संपर्क में आने का खतरा है और उसे सुधार गृह में ही रहना चाहिए। लेकिन हाईकोर्ट ने इस सोच को सख्त लहजे में खारिज करते हुए कहा: “ऐसी सोच न केवल अनुचित है, बल्कि अमानवीय भी है। यह पूरे समुदाय को बदनाम करती है और इंसानियत का अपमान है। कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि समाज के गरीब वर्ग, खासकर स्लम बस्तियों में रहने वालों को अपराध से जोड़ देना समाज के लिए बेहद शर्मनाक है। स्लम बस्तियां अपराध की जगह नहीं कोर्ट ने सच्चाई को उजागर करते हुए कहा कि देश का एक बड़ा हिस्सा ऐसे ही छोटे घरों और झुग्गी बस्तियों में रहता है। कहा कि स्लम बस्तियां अपराध की जगह नहीं, बल्कि आपसी सहयोग, स्नेह और संस्कृति का प्रतीक हैं। ऐसी जगहों पर भावनात्मक सहयोग और अपनापन होता है, जो किसी संस्थान या सुधार गृह में मिलना मुश्किल है। कोर्ट ने न्यायपालिका को चेताते हुए कहा कि न्याय करते समय कोर्ट को गरीब या पिछड़े वर्ग के प्रति किसी भी तरह का पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए। गरीब होने या अनाथ होने को अपराध से जोड़ना न्याय नहीं, अन्याय है। अनाथ होने को जमानत न देने का आधार मानना गलत कोर्ट ने विशेष रूप से इस बात पर नाराजगी जताई कि आरोपी को इसलिए जमानत नहीं दी गई क्योंकि वह अनाथ है – पिता का देहांत हो चुका है और मां ने त्याग दिया है। अनाथ होने को जमानत से इनकार का कारण बनाना, जुवनाइल जस्टिस एक्ट की आत्मा के खिलाफ है। ऐसा बच्चा तो और ज़्यादा सहानुभूति और समर्थन का हकदार है। सुधार गृह में लंबी हिरासत उल्टा नुकसानदायक कोर्ट ने यह भी कहा कि लंबे समय तक बाल सुधार गृह में रखने से बच्चे पर बुरा असर पड़ सकता है, क्योंकि वहां पर कई अन्य आरोपी बच्चे भी होते हैं और वहां असुरक्षा, शोषण और मानसिक दबाव की आशंका रहती है।

FacebookMastodonEmail

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *