171 दिन के उपवास का रिकॉर्ड बनाने वाले जैन मुनि वीरभद्र ने राजनांदगांव में तप के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि तप की शुरुआत इच्छाओं की समाप्ति से होती है। मुनि वीरभद्र ने आहार को शरीर की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता बताया। मुनि वीरभद्र ने कहा कि, जो व्यक्ति आहार का त्याग कर सकता है, उसके लिए अन्य सभी वस्तुएं गौण हो जाती हैं। उन्होंने समझाया कि तप में आहार का नियंत्रण आवश्यक है। यह भी स्पष्ट किया कि केवल भूख से कम खाना ही पर्याप्त नहीं है। जीभ के स्वाद पर रखना चाहिए नियंत्रण उन्होंने कहा कि व्यक्ति को अपनी जीभ के स्वाद पर भी नियंत्रण रखना चाहिए। पेट भरने के लिए खाने की बजाय कम से कम द्रव्यों से काम चलाना चाहिए। तप का वास्तविक उद्देश्य राग को समाप्त करना है। क्रियाएं केवल लोक रंजन के लिए नहीं, बल्कि आत्म रंजन के लिए भी होनी चाहिए। भाव को समाप्त करने का यही उचित समय उन्होंने कहा कि अंदर की क्रूरता और पशुता के भाव को समाप्त करने का यही उचित समय है। आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए वायुतप और अभ्यंकर तप दोनों का संयुक्त अभ्यास आवश्यक है।