उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी की पहल पर पर्यटन विभाग की ओर से शुरू की गई लोकप्रिय सांस्कृतिक श्रृंखला ‘कल्चरल डायरीज’ की अलबेली शाम शुक्रवार को अल्बर्ट हॉल में संगीतमयी अंदाज में सजी। खास बात रही कि शुक्रवार को विश्व विरासत दिवस भी था, इस सांस्कृतिक कार्यक्रम में जैसलमेर से पधारे प्रसिद्ध अलगोजा वादक तगाराम भील और उनके 13 सदस्यों के दल ने दर्शकों को राजस्थानी लोक संगीत की आत्मा से रूबरू कराया। कार्यक्रम में न केवल घरेलू बल्कि बड़ी संख्या में विदेशी पर्यटकों ने भी भाग लिया और राजस्थान की विलुप्तप्राय लोक वाद्य यंत्रों से निकली स्वरलहरियों दर्शक अभिभूत हो गए। इन स्वरलहरियों के साथ प्रदेश के आंचलिक गायन ने फिजा में घुली मिठास को दोगुना कर दिया। कार्यक्रम की शुरुआत तगाराम भील के अलगोजा वादन से हुई, जो दर्शकों को थार के रेगिस्तान की शांत लेकिन सजीव धड़कनों से जोड़ गया। उनके साथ कलाकारों ने मोरचंग, रावणहत्था, कामायचा, खड़ताल, नाद, ढोलक और मटकी जैसे पारंपरिक लोक वाद्य यंत्रों के जरिए समां बांध दिया। सुरों की इस दुनिया में जब लोक गायन की मिठास घुली तो समूचा अल्बर्ट हॉल परिसर मंत्रमुग्ध हो गया। बचपन से साधना, 35 देशों तक सुरों का सफर
जैसलमेर के मूलसागर गांव से आने वाले तगाराम भील ने अलगोजा वादन की कला अपने पिता टोपणराम से सीखी थी। उन्होंने बाल्यकाल में चोरी-छुपे अलगोजा बजाना शुरू किया और आज वे 35 से अधिक देशों में अपनी प्रस्तुतियां दे चुके हैं। उनकी कला ने न केवल उन्हें बल्कि उनके समुदाय को भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। इस प्रस्तुति में एक बाल कलाकार द्वारा दी गई गायन प्रस्तुति ने दर्शकों का विशेष ध्यान खींचा। कार्यक्रम के समापन पर कालबेलिया कलाकारों ने अपने जीवंत नृत्य से सभी को थिरकने पर विवश कर दिया। लोकगीतों में “धरती धोरा री”, “केसरिया बालम”, और “लेता जाइजो रो…” की प्रस्तुति ने सभी को रसविभोर कर दिया। ‘कल्चरल डायरीज’ श्रृंखला के अंतर्गत शनिवार 19 अप्रैल की शाम भी लोक सांस्कृतिक रंगों से सराबोर रहेगी। उदयपुर के धरोहर संस्थान द्वारा प्रस्तुत चरी, घूमर, भवई, तेहर ताली, गवरी और मयूर नृत्य दर्शकों को एक बार फिर राजस्थान की विविध सांस्कृतिक विरासत से परिचित कराएंगे। इन नृत्यों की विशेषता यह है कि ये राजस्थान की क्षेत्रीय विविधताओं को समेटे हुए हैं और हर प्रस्तुति में परंपरा, समर्पण का संगम देखने को मिलेगा।