रांची | आगमन वह समय है जब हम भौतिक तैयारियों से परे हृदय रूपी चरनी को तैयार करते है, जो वास्तव में आध्यात्मिक तैयारी होती है। इस समय अपने हृदय व मन की अशुद्धियों जैसे क्रोध, स्वार्थ, घमंड, निंदा शिकायत, आलसीपन व हिंसा को हटाना चाहिए। क्योंकि तभी प्रभु येसु हमारे हृद्य में वास कर सकेंगे। विनम्रता के साथ हम अपने छोटे-छोटे प्रयासों से ईश्वरीय निकटता का अनुभव कर सकते हैं। इस काल में हमें अपने वचनों तथा कर्मों से किसी को दुख नहीं पहुंचाना चाहिए। किसी के प्रति मन व दिल में कोई कटुता ना हो। पुण्य करने का अर्थ मात्र दुनियावी वस्तुओं का दान देना न होकर, दूसरों के प्रति सुविचार प्रार्थना तथा प्रेम होना चाहिए। तभी हम सही अर्थों में बालक येसु के स्वागत के लिए तैयार हो पाएंगे। इन्ही वास्तविक पुण्यकर्मों के द्वारा हम बाइबल वचनों में चलने का अभ्यास करते हुए। इस समय अपने घर, अपने हृदय, मन, दिल और आत्मा की चरनी को साफ करें। आध्यात्मिक रूप से उसको सजाएं और येसु ख्रीस्त के जन्मोत्सव के लिए सच्चे अर्थों में अपने आपको तैयार करें।


