भास्कर न्यूज | जालंधर संध्या की बेला में पीली रोशनी में नहाए स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर की छटा देखते ही बन रही थी। शहर के विभिन्न हिस्सों से श्रद्धालुओं के कदम मंदिर परिसर में तेजी के साथ बढ़ रहे थे। सभी के सभी श्री राम कथा के सुंदर पाठ सुनने को आतुर थे, क्योंकि मंदिर परिसर में कथा व्यास दिल्ली अक्षरधाम के विद्वान संत मुनिवत्सल दास स्वामी रोचकता के साथ गूढ़ प्रसंग को भी बड़े ही सहज ढंग से प्रस्तुत कर रहे थे। कथा प्रारंभ होने से पहले स्वामिनारायण अक्षरधाम मंदिर की सेवा में जुटे विद्वत जनों ने वंदना एवं भजन से पूरे माहौल को राममय कर दिया था। जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े… इस भजन ने पूरे परिसर को श्रीराम और केवट संवाद के साथ इस तरह जीवंतता के साथ जोड़ा कि जैसे प्रभु के साक्षात दर्शन हो गए। इसके बाद श्रद्धालुओं ने श्रद्धा के पुष्प अर्पित किए और संत मुनिवत्सल दास स्वामी ने प्रभु श्रीराम कथा के सर्वाधिक मर्मस्पर्शी संवाद राम वनगमन से पुन: जोड़ दिया। उन्होंने कहा कि राम के प्रिय अनुज भरत चित्रकूट की यात्रा पर हैं। तीनों माताएं रथ पर हैं और भरत नंगे पांव विलाप करते आगे बढ़ रहे हैं। गुरुओं के मनाने के बाद भी वह रथ पर सवार नहीं हो रहे हैं। वेदना के साथ रो रहे हैं। भातृ प्रेम की इस करुण कथा ने श्रद्धालुओं के नेत्र सजल कर दिए। इसके बाद प्रभु राम की सहजता का बखान आया तो हृदय में जैसे सुख-शांति का मन के अंदर प्रवेश हुआ। संत मुनिवत्सल दास स्वामी ने भक्तों सीधा संवाद स्थापित करते हुए कहा कि भगवान श्रीराम के जीवन एवं रामायण जी से प्रेरणा प्राप्त करके आज के समय में हम किस प्रकार मूल्यों एवं आदर्शों को अपने जीवन में आत्मसात कर सकते हैं। रामायण में भगवान श्रीराम एवं उनके परिवारजन के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए स्वामीजी ने बताया कि संवादिता का सेतु बनाकर विश्व को लक्ष्य तक पहुंचाना हो तो सभी को चार मूल्यों को जीवन में अपनाना होगा। ये चार मूल्य हैं- सहन करना, कष्ट उठाना, मनमानी छोड़ना एवं अनुकूल हो जाना। इसके साथ ही संस्कृति और पूजन भजन से जुड़े रहना अपरिहार्य है। कथा में बड़ी संख्या में इलाका एवं श्रद्धालुओं के साथ शहर के गणमान्य नागरिकों ने भी कथा अमृत का रसपान किया। रविवार को तीन दिन की कथा की तीसरा एवं पूर्णाहुति का दिन रहेगा। रविवार को कथा संध्या 6 बजे प्रारंभ होगी। कथा व्यास प्रवचन करते हुए। मंदिर परिसर में श्रीराम कथा का रसपान करते श्रद्धालु।